कविता महाजन की कविताएँ ::
मराठी से अनुवाद : सुनीता डागा

कविता महाजन

मेरी ही तरह

मालिक,
कुछ दिनों तक आपको
सब्र करना होगा
पिंजड़े में क़ैद बाघिन
शुरू-शरू में बेशक गुरगुराएगी
धीरे-धीरे
उसके नाख़ून और दाँतों की धार को
भोथरा कर ही देंगे आप
फिर तो भूख लगने पर
घास भी खा लेगी वह चुपचाप
मेरी ही तरह!

आशंका

औरत समझ ही नहीं पाई
एक भारी-भरकम ग्रंथ के साथ
दीमक भी घर चली आई थी

फ़ुटपाथ से उसके ही ख़रीदे
उस दुर्लभ पुराने ग्रंथ के शब्दों में ही
क़ैद रही उसकी नज़र
नहीं दिखाई दिए उसे साथ के
काले धब्बे

दीमक फैलती चली गई
नई-पुरानी किताबों से पूरी अलमारी में
और किताबों और अलमारी तक ही न रहकर
खिड़कियों-दरवाज़ों को टटोलती हुई
घेर लिया उसने सारा घर
बंदी अक्षरों का आशय जैसे
घर कर जाए पूरे मन में!

मालिकों को पहले ही पसंद न थीं—
किताबें, और वे भी फ़ुटपाथ की
उठाकर उन्हें घर ले आना
छपे अक्षरों पर, काग़ज़ी पत्रावली पर
अनुत्पादक निवेश करना

और अब तो दीमक
सिद्ध कर रही थी खोखलापन
लकड़ी, ईंटें, सीमेंट का
ढहा रही थी बुनियाद
उस सबकी
जो लगा था उन्हें स्थिर-सशक्त-पक्का!

खरोंच

हर खरोंच नहीं होती है
एक-सी

भले ही हो सभी
एक ही नाख़ून की
फिर भी

जिस-तिस के रंग
होते हैं भिन्न-भिन्न छटाओं के
अलग-अलग होती है
जिस-तिस की लंबाई

और हर खरोंच
लिखी भी नहीं जा सकती।

बची हुई कहानी

आजकल बेटी ऊब जाती है
बार-बार सुन चुकी कहानी से
फिर बदल देती है वह
चरित्र, स्थान कहानी के
और कहानी बन जाती है नई

बाघ की क़ैद से छूट कर
कद्दू में बैठकर जाने वाली बुढ़िया की
कहानी सुना रही थी मैं उसे
तब भी इसी तरह से टोका था उसने मुझे
स्वयं ही सुनाने लगी
उसी कहानी को नए अंदाज़ में

बुढ़िया निकली घर से
जाने के लिए बेटी के पास
तब आड़े आया घर
कहने लगा : रुको मैं तुम्हें खाता हूँ
बुढ़िया ने कहा :
बेटी के पास जाऊँगी
मोटी-ताज़ी बनकर आऊँगी
फिर मुझे खाइयो!

बेटी ने कहा
माँ, अब बची हुई कहानी
तुम सुनाओ
एक गहरी साँस भर कर हँसते हुए
थामा मैंने कहानी का अगला सिरा

बुढ़िया ने कहा :
बेटी के पास जाऊँगी
मोटी-ताज़ी बनकर आऊँगी
फिर मुझे खाइयो!

पर कहा घर ने :
मेरी क़ैद से ऐसे-कैसे छूट जाओगी
क्या मैं कोई बाघ हूँ?
वह जानवर था
मैं घर हूँ।

कम से कम

मुझे स्मरण हो उठते हैं
अपरिहार्यता से
मेरे गर्भाशय से
खरोंचकर निकाले बच्चे

इन बच्चों के अभी तक
लिंग न थे
उनकी कोंपलों से बाक़ी था अभी
सभी अंगों का फूटना

उन्हें
नहीं पता था प्रकाश
स्पर्श-रस-गंध-ध्वनि से
थे वे अज्ञात

जाति-धर्म-पैसा-सत्ता
ये भेद तो
कोसों दूर थे उनसे

वे नहीं जानते थे कि
ग़लत गर्भाशय चुना था उन्होंने
या कहें गर्भाशय का चुना हुआ
मालिक ग़लत था

अच्छा हुआ
जन्म से पहले ही
खरोंच लिए गए
कुछ ग़ुलाम
या मालिक भी !
कम से कम…

कविता

कविता का यूँ देह की
पोर-पोर में
उफान मारकर
सुलगते रहना
अच्छा नहीं होता है

कविता उतरनी चाहिए काग़ज़ पर
उँगलियाँ छाँट दी जाएँ
इससे पहले!

कविता महाजन (5 सितंबर 1967-27 सितंबर 2018) सुप्रसिद्ध मराठी कवयित्री और साहित्यकार हैं। ‘तत्पुरुष’, ‘धुळीचा आवाज’, ‘मृगजळीचा मासा’, ‘समुद्रच आहे एक विशाल जाळे’ और ‘नव्या वाटा नवी वळणे’ उनके प्रमुख शीर्षक कविता-संग्रह हैं। सुनीता डागा मराठी-हिंदी लेखिका-अनुवादक हैं। उन्होंने समकालीन मराठी स्त्री कविता पर एकाग्र ‘सदानीरा’ के 22वें अंक के लिए मराठी की 18 प्रमुख कवयित्रियों की कविताओं को हिंदी में एक जिल्द में संकलित और अनूदित किया है। यह प्रस्तुति ‘सदानीरा’ के 22वें अंक में पूर्व-प्रकाशित।

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