कविताएँ :: सपना भट्ट
Posts tagged स्त्री विमर्श
मैं दबाकर रखी गई चीख़ हूँ जो तुम्हें बावला कर सकती है
कविताएँ :: यशस्वी पाठक
मैं घर के साथ सोते-जागते अँधेरे की हो गई हूँ
कविताएँ :: आंशी अग्निहोत्री
क्या अब भी पाठ-योग्य नहीं हुआ समय!
बेबी शॉ की कविताएँ :: बांग्ला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा
रात में प्रेम चढ़ जाता है चाँद पर और उछाल देता है मछलियाँ पानी के आसमान में
कविताएँ :: सुजाता गुप्ता
रूखे मौन के आवरण से ढक लिया अपना आप
प्रोमिला मन्हास की कविताएँ :: डोगरी से अनुवाद : कमल जीत चौधरी