पैट्रिस लुमुम्बा की कविता ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद : रमाशंकर सिंह

पैट्रिस लुमुम्बा

अफ़्रीका के हृदय में सवेरा

हज़ारों वर्ष
अफ़्रीकियों तुमने सहे हैं दुःख-दर्द
जैसे सहते हैं जानवर

तुम्हारी अस्थियाँ उस हवा में घुली हैं
जो हरहराती है पूरे रेगिस्तान में
तुम्हारे सितमगरों ने बनाए हैं
चमचमाते जादुई मंदिर
तुम्हारी आत्मा को सुरक्षित रखने के लिए
बचाए रखने के लिए तुम्हारे कष्ट को
हम बर्बरों के हिस्से थी केवल तनी मुट्ठी
और गोरों ने तान रखी थी चाबुक
तुम्हारे हिस्से था मरना
केवल विलाप कर सकते थे तुम
तुम्हारे शगुन, तुम्हारी शुभता से तैयार की उन्होंने भूख, अनगिनत बंधन
यहाँ तक कि
वनों की छत्रछाया से डरावनी क्रूर मृत्यु
झाँक रही थी
साँप जैसे लिजलिजी तुम्हारी ओर रेंगती हुई
जैसे पेड़ों की टहनियों और पल्लवों ने
घेर रखा हो
तुम्हारी बीमार होती आत्मा को
बड़े धोखेबाज़ नाग की तरह
तुम्हारे सीने से लिपट गई हों
तुम्हारी गर्दन पर उन्होंने लाद दिया जल-अग्नि का जुआ
उन्होंने तुम्हारी प्रिय पत्नी को छीन लिया
सस्ते मोतियों की चमक पर
तुम अद्भुत धनवान थे जिसके बल पर
नाप नहीं सकता जिसे कोई
घनी अँधेरी रात में आती है
तुम्हारी झोपड़ी से टम-टम की आवाज़
क्रूर सिसकियों से लदी-फँदी
काली नदियों की ओर जाती हुई
जिसमें बैठी हैं शोषित लड़कियाँ
आँखों से बहते आँसू और शरीर से बहता लहू लिए
जहाज़ जो गए उन देशों में
जहाँ तुच्छ आदमी चींटी की बाँबी की तरह थे
और डॉलर था राजा
उन्होंने रौंदा उस धरती को
जिसे कहते थे मातृभूमि
वहाँ था तुम्हारा बच्चा, तुम्हारी बीवी सब वहीं थे
दिन-रात
एक भयानक चक्की उन्हें पीस रही थी घातक दर्द में
तुम दूसरों की तरह ही थे मनुष्य
और उन्होंने यक़ीन दिलाया तुम्हें
कि गौरांग ईश्वर क्षमा कर देगा सबको अंत में
आग के किनारे तुमने मनाया शोक
किसी अजनबी की देहरी पर भहरा जाने वाले भिक्षुक के विलाप-गीत गाए तुमने

और जब उन्माद का दौरा आया
तुम्हारा खौला ख़ून
नाचे तुम सारी रात
तुम नाचे, सिसके
अपने पिता की तरह
तूफ़ान के क्रोध से
किसी मर्दाना धुन की गीत के बोल तक
हज़ारों साल की मुफ़लिसी से निकली तुम्हारी ताक़त
जाज़ की झन्नाटेदार आवाज़ में
भोंकार छोड़कर किया जाने वाला विलाप
महाद्वीपों को उद्वेलित करता है
जैसे कोई भीमकाय समुद्री लहर हो
पूरी दुनिया अचंभित
जागती है हड़बड़ी में
ख़ून की हिंसक लय में
जाज़ की हिंसक लय में
गोरे आदमी का चेहरा मरियल-सा दीखता है
इस नए गीत को सुनकर
वह गीत लाता है बैंगनी रौशनी
रात के अँधेरे में।

मेरे बंधु, सवेरा हो गया है
हाँ, सवेरा हो गया है
हमारे चेहरे देखो
हमारे पुराने अफ़्रीका में फूट रही है एक नई सुबह
यह अब केवल हमारी अपनी होगी
पानी होगा अपना
शक्तिशाली नदियाँ होंगी अपनी
जिन्हें बेचारे अफ़्रीकियों ने सौंप रखा था हज़ारों वर्षों से
सूरज की बेधक रश्मियाँ हमारे लिए चमकेंगी फिर
वे आँख के आँसू सुखाकर
ले आएँगी तुम्हारे मुँह में लार

जिस क्षण तुम तोड़ते हो हाथ में पड़ी ज़ंजीरों को
पैर की भारी बेड़ियों को
बुरा और शैतानी समय चला जाएगा
और नहीं लौटकर आएगा कभी भी दुबारा

आज़ाद और बहादुर कांगो उठ खड़ा होगा
इस काली मिट्टी से
इन काले बीजों से आजाद और बहादुर कांगो में फूल खिलेंगे।

पैट्रिस लुमुम्बा (1925-61) डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो के पहले प्रधानमंत्री थे। महज़ 36 वर्ष की उम्र में उनकी हत्या कर दी गई थी। 17 जनवरी 1961 को हुई उनकी हत्या में अमेरिका और बेल्जियम के नेताओं का हाथ माना जाता है। यहाँ प्रस्तुत कविता अँग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद के लिए face2faceafrica.com से चुनी गई है। रमाशंकर सिंह से परिचय के लिए यहाँ देखें : जब वे कहें कि आप सुंदर हैं

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