कविताएँ ::
रमाशंकर सिंह

रमाशंकर सिंह

बेकार की चीज़ें

पेड़ सूखने में लगते हैं
तीन-चार बरस
केवल यह जानने में कि जड़ में लगी है दीमक
एक ऋतु गुज़र जाती है
पृथिवी लगा देती है कई-कई चक्कर

नदी राह बदलती है इतने धीरे
कि नाविकों की कई पीढ़ियाँ चली जाती हैं
नदी से पार
दुनिया से पार

बेवजह ख़ुश बच्चे
एक दिन चुपके से बताते हैं
आप हैं कितने बेवक़ूफ़

बहुत बातें
पता चलते-चलते चलती हैं
मसलन अंडा मुर्ग़ी का है या बतख़ का
मछली नदी की है या तालाब की
धान तराई का है या अमेरिका का
दूध भैंस का है या यूरिया फेंटकर बना है

हम घिसते रहते हैं
किसी बच्चे के खिलौने जैसे
और एक दिन
फेंक दिए जाते हैं किसी कोने में।

साढ़े पाँच बजे

मैं निषादराज गुह का बेटा
एकलव्य का भाई
मत्स्यगंधा का भतीजा
निकाल रहा हूँ बालू
जमुना के कछार में

मत्स्यगंधा से अभी न होगी भेंट
वह शहर में बर्तन माँजने गई
लौटेगी देर रात
लौट जाओ अपने घर
सूरज डूब गया है

कल आना साढ़े पाँच बजे शाम को
मैं तुम्हें वहाँ ले चलूँगा
जहाँ एकलव्य का अँगूठा गाड़ा गया है
बबूल के पेड़ के नीचे
बगल में महर्षि व्यास ने
झोपड़ी बना ली है
वह आजकल एक स्टीमर में
सहायक का काम करते हैं
कल आना साढ़े पाँच बजे
मैं तुम्हें उनसे मिलवा दूँगा।

पक्षी बेचने वाले

सुबह-सुबह सिगरा बनारस में
लखनऊ के लेखराज में
पटना में बिहार के मुख्यमंत्री के घर के नज़दीक
शहर के सिविल लाइंस में
कलेक्टर के बँगले के पीछे
यहाँ-वहाँ
इकट्ठा होता है दुर्भाग्यशालियों का हुजूम

एक पीला पक्षी
हरा पक्षी
नीला या भूरा पक्षी
ख़रीदकर दुरुस्त करते हैं अपना भाग्य

पिछली एक सदी से
चेतन छपरा के मिर्शकारी टोला के मिर्शिकारों का
नहीं सुधरा भाग्य
नहीं आए कभी जेब भर पैसे
लोग खोज रहे हैं जुगत
अपना भाग्य बदलने की
कोई पक्षी पकड़ता है
कोई ख़रीदता है

एक देश
अपना भाग्य फिरने की बाट जोह रहा है
पक्षियों के सहारे।

रमाशंकर सिंह हिंदी कवि-लेखक और अनुवादक हैं। उनसे और परिचय के लिए यहाँ देखें : जब वे कहें कि आप सुंदर हैंअफ़्रीका के हृदय में सवेरा

1 Comment

  1. अवनीश मिश्रा नवम्बर 24, 2020 at 7:47 पूर्वाह्न

    रमा भैया बहुत शानदार कविता लिखी है आपने👌। तीनों कविताएं बेहतरीन है।

    Reply

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