फेदेरीको गार्सिया लोर्का की कविताएँ ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद : शानी

फेदेरीको गार्सिया लोर्का │ तस्वीर सौजन्य : History and Biography

सुनहरी लड़की का क़सीदा

तालाब में नहा रही थी
सुनहरी लड़की
और तालाब सोना हो गया

कँपकँपी भर गए उसमें
छायादार शाख़ और शैवाल
और गाती थी कोयल
सफ़ेद पड़ गई लड़की के वास्ते

आई उजली रात
बदलियाँ चाँदी की गोटों वाली
खल्वाट पहाड़ियों और बदरंग हवा के बीच
लड़की थी भीगी हुई
जल में सफ़ेद
और पानी था दहकता हुआ बेपनाह
फिर आई ऊषा
हज़ारों चेहरों में
सख़्त और लुके-छुपे
मुंजमिद गजरों के साथ

लड़की आँसू ही आँसू
शोलों में नहाई
जबकि स्याही पंखों में
रोती थी कोयल

सुनहरी लड़की थी
सफ़ेद बगुली
और तालाब हो गया था सोना।

घुड़सवार का गीत

काली चाँदनी में राहज़न के
झनझना रहे हैं रकाब।
काले घोड़े
कहाँ लिए जा रहे हो पीठ पर
मुर्दा असवार?

राहज़न बेजान
कड़े करख़्त रकाब।
हाथ से जिसकी छूट चुकी हो लगाम
सर्द घोड़े
फूल गंध, चाक़ू की क्या ख़ूब।

काली चाँदनी में
बाज़ुओं से मोरिना पर्वतमाला के
होता है रक्तपात।

काले घोड़े
कहाँ लिए जा रहे हो पीठ पर
मुर्दा असवार?

सर्द घोड़े
फूल गंध, चाक़ू की क्या ख़ूब।

काली चाँदनी में
चीरती हुई चीख़ और अलाव की धार

काले घोड़े कहाँ लिए जा रहे हो
अपना मुर्दा असवार?

काले फ़ाख़्तों का क़सीदा

चंपा की शाख़ों के बीच
मैंने देखे दो स्याह फ़ाख़्ते
सूरज था एक
चाँद था दूसरा

प्यारे दोस्तो,
कहाँ है मक़बरा मेरा, मैंने पूछा

मेरी दुम में, सूर्य ने कहा
हलक़ में मेरे, चाँद बोला

और कमर-कमर तक मिट्टी में
चलते हुए मैंने देखे
दो बर्फ़ानी उक़ाब,
और एक लड़की निर्वस्त्र।
दोनों थे एक
और लड़की न तो यह थी और न वो

प्यारे उक़ाबो,
कहाँ है मक़बरा मेरा, मैंने पूछा
मेरी दुम में, सूर्य ने कहा
हलक़ में मेरे, चाँद बोला

चंपा की शाख़ों के बीच
मैंने देखे दो फ़ाख़्ते निर्वस्त्र।
दोनों थे एक

और दोनों न तो यह और न वो।

खोज

बर्फ़ के तारे

पहाड़ियाँ चाहती हैं
पानी हो जाएँ
और पीठ में खोजती हैं वे
टिकने के लिए
सितारे।

बादल

और चाहती हैं पहाड़ियाँ
निकल आएँ उनके पंख
और खोजती हैं वे
बादल
सफ़ेद बुर्राक़।

बर्फ़

तारे हो रहे हैं बेपर्द
झरते हैं पठारों पर
सितारों के लिबास
ज़रूर आएँगे तीरथ यात्री
और खोजेंगे आर्त्तनाद
कल के बुझे हुए अलाव।

सिरफिरा गीत

माँ,
चाँदी कर दो मुझे

बेटे,
बहुत सर्द हो जाओगे तुम

माँ,
पानी कर दो मुझे

बेटे,
जम जाओगे तुम बहुत

माँ,
काढ़ लो न मुझे तकिये पर
कशीदे की तरह

कशीदा
हाँ,
आओ।


फेदेरीको गार्सिया लोर्का (1898–1936) संसारप्रसिद्ध स्पैनिश कवि हैं। उनकी यहाँ प्रस्तुत कविताएँ ‘साक्षात्कार’ (197-198, मई-जून 1996, संपादक : ध्रुव शुक्ल) से साभार हैं। शानी (1933-1995) हिंदी के अत्यंत उल्लेखनीय कथाकार, अनुवादक और संपादक हैं। ‘काला जल’ (उपन्यास) और ‘शालवनों का द्वीप’ (यात्रा-वृत्तांत) सरीखी कृतियों की वजह से उनकी याद बनी ही रहती है।

2 Comments

  1. सुमित त्रिपाठी जुलाई 7, 2022 at 6:32 पूर्वाह्न

    बेहतरीन। लोर्का का अनुवाद करना साधारण लोगों के बस की बात नहीं। शानदार प्रस्तुति।

    Reply
  2. चंद्रकला त्रिपाठी अगस्त 8, 2022 at 2:49 पूर्वाह्न

    शानदार

    Reply

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