देवारति मित्र की कविताएँ ::
बांग्ला से अनुवाद : बेबी शॉ

देवारति मित्र | तस्वीर सौजन्य : संदीप कुमार 

सभी अभिन्न हैं

चीज़ों को टुकड़ों में मत देखो…
सभी अभिन्न हैं।
भाग और घटाव का क्या लाभ?
संख्याओं के जोड़ और गुणा की क्या आवश्यकता है?
ये जो हम दोनों हैं,
दिन भर बातें करना, कहानी सुनना
यह काफ़ी नहीं है!

साइबेरिया की एक विशाल बतख़
पास के तालाब में उतर आई।
अगर वह अगले साल नहीं आई,
क्या तुम पैर फैलाकर रोओगे?
देखो, अनंत चारों दिशाओं में फैला हुआ है,
हम अखंड हैं—

और कुछ नहीं…

जीवन में भी चाहती हूँ

एक बार जो चला गया,
क्या वह बार-बार वापस आता है?

पहाड़ के सीने से तेज़ झरने के झरझर शब्द
पहाड़े याद करना जैसे बारिश के शब्द
खिलती हुई चमेली की पुकार
मैं उसे अपने ख़ून में सुनती हूँ।

यह ध्वनि में तो आता है, दृश्य में नहीं।

उसे स्पर्श से, गंध से, नीले आकाश से, मुक्त पवन से—
जीवन में भी चाहती हूँ मैं…

सपने में बच्चे की मुस्कान

एक कवि ने कहा है—
संसार एक धर्मशाला है।
लोग वास्तव में कितने दिन जीवित रहते हैं,
अगर बहुत ज़्यादा जीवित रहे तो सत्तर या अस्सी—
इसका अंतर ही है प्यार-प्रेम,
झगड़े, हत्याएँ, पाप-पुण्य…

जीवन और मृत्यु के बारे में कुछ सोचना—
डर लगता है
क्योंकि मैं किसी को नहीं जानती…

मेरा सात महीने का बच्चा स्तनपान करता है—
मैं घंटों बैठा उसका चेहरा देखती रहती हूँ।

छोटे ग़ुब्बारे जैसे नीले फूल
पंथनिवास के बग़ीचे के पेड़ में
मेरा बच्चा उन पर हँसता है सपने में

कठिन बातें मैं नहीं समझती हूँ,
वह भी नहीं।

एक छुट्टी

मैरी बिस्किट की तरह गोल चाँद
हम दोनों इसे आसानी से चाय में डुबा सकते थे
लेकिन हमने ऐसा नहीं किया।

हमने अपने पूरे जीवन में
कितने फूल खिलाए और फल दिए हैं
अब हम उस समय से आगे निकल चुके हैं।

यहाँ तक कि जब इंद्रधनुषी रंग-बिरंगे
पक्षियों की आवाज़ भी सुनाई देती है
तब भी शरीर में कोई कँपकँपी नहीं होती
क्योंकि हमारे पास जितने शब्द हैं, जितने दृश्य हैं
उनके अंदर सब कुछ गूँज रहा है, उबल रहा है।

दिल से भी ज़्यादा गुप्त एक देश
जिसे हम पति-पत्नी ने खोजा
सपने भी जिसके पास अजीब लगते हैं।

हमें एक अंतराल मिल गया
इसके बारे में कभी किसी को नहीं बताऊँगी मैं।

बचा हुआ समय

हम गहरे नीले रंग के कमरे में रहते हैं
पुंज-पुंज आलोक सरस्वती की ध्वनि की तरह—
बाहरी दुनिया और भीतरी दुनिया में कोई अंतर नहीं है…
सब अपने।

रोग-शोक-मृत्यु हमें छूते नहीं?
गुलाब की पंखुड़ियाँ,
रजनीगंधा की ख़ुशबू महसूस नहीं होती?
दर्द और ख़ुशी निरंतर साथी हैं,
हमारा मर्म हमारे जीवन का शिल्प है

हमने यह तय किया है
किसी से पूछा नहीं…
यह सब लेकर बीत जाएगा हमारा जीवन

गहरा नीला रंग और
सरस्वती के संगीत का पुंज-पुंज आलोक!


देवारति मित्र [1946-2024] बांग्ला की अत्यंत समादृत कवि हैं। यह प्रस्तुति ‘सदानीरा’ के समकालीन बांग्ला स्त्री कविता अंक में पूर्व-प्रकाशित। बेबी शॉ से परिचय के लिए यहाँ देखिए : बेबी शॉ

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