रॉबर्तो बोलान्यो की कविताएँ ::
अनुवाद : आदित्य शुक्ल

roberto bolano poems
रॉबर्तो बोलान्यो

पेड़

वे मुझे ख़ामोशी से ताकते हैं
जब मैं लिख रहा होता हूँ

पेड़ों की चोटियाँ भरी हुई हैं
पक्षियों से,
चूहों, साँपों और कीड़ों से
मेरा सिर भरा हुआ है
भय और आगे पड़ने वाले स्तेपी पार करने की योजनाओं से।

कविताएँ मत लिखो लेकिन वाक्य…

वे प्रार्थनाएँ लिखो जिन्हें तुम
उन कविताओं को लिखने से पहले बुदबुदाओगे
जिन पर तुम्हें नहीं होगा विश्वास
कि वे तुम्हारी लिखी हुई पंक्तियाँ हैं।

साधु

शिकार के दिनों में बहुत ख़ुश था मैं
मैदानी पेड़ों की छाया में सोया—
मेरे स्वप्न नदियों और क़िलों पर चलाते थे हुक्म

भोर में मेरे भाई ने मेरे कानों में फुसफुसाकर पहाड़ी पर लगे बाड़े दिखाते हुए कहा—
उपनिवेशवादी इसी तरह के बाड़े बिछाकर पहाड़ी के उस ओर चले गए

श्रद्धांजलियाँ—मैंने कहा

मैंने तब तक घोड़ा दौड़ाया
जब तक कि मुझे सेना-मुख न दिख गया

कोई नहीं बता सकता है कि हमारा ईश्वर कहाँ चला गया है

सूर्यास्त की ऊष्मा कृत्रिम जान पड़ती थी

मैंने पाया—
कोई मेरे लिखे हुए वाक्यों पर कभी बहुत पहले सो चुका था।

संघर्ष से कुछ उम्मीद मत करो
संघर्ष ख़ून-ख़राबा लेकर आते हैं
और, और ख़ून-ख़राबे से ख़ून-ख़राबे को न्यायोचित ठहराते हैं
रानी के पैरों के पीछे
जो कि राजा के शिश्न की प्रतीक्षा में खुले हुए हैं
ख़ाली कमरे, सिरविहीन देहों पर
मृत्यु की सम्मोहित कर देने वाली दृष्टि आलोकित है।

नीतिशास्त्र

अजीब, सुंदर विश्व : आत्महत्याएँ और हत्याएँ—
यहाँ कोई जादुई स्त्री नहीं है, गास्पर, सिर्फ़ भय है और
उस आदमी की प्रयोजनीय चाल जो अब और जीना नहीं चाहता।

रोबोट

मुझे याद है प्लेटो ने कहा था
कि मैंने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया,
अब जबकि मैं मृत्यु के नाइट-क्लब में हूँ
और यहाँ कुछ कर सकने की हालत में नहीं हूँ
जहाँ,
स्पेस एक पैराडॉक्स है।
यहाँ कुछ नहीं हो सकता
फिर भी मैं यहाँ हूँ
एक रोबोट की तरह
बिना किसी मिशन—
एक शाश्वत कलाकृति की तरह।

मृत मित्रों की आवाज़ें मत सुनो गास्पर,
उन मृत अजनबियों की आवाज़ें मत सुनो
जो कहीं परदेश में तेज़ी से ढलते गोधूलि-वेला में मारे गए हैं।

मृत्यु एक ऑटोमोबाइल है,
दो-तीन दूरस्थ मित्रों के साथ।

एक बार जो अपना प्यार खो देता है, वह उसे बार-बार खोएगा। जिसकी उपस्थिति में कोई हत्या हुई हो, वह हर पल दूसरी हत्या देखने को तैयार रहता है।

—हैंस हन्नी यान

तुम्हारा दूरस्थ हृदय

मैं कहीं भी सुरक्षित महसूस नहीं करता
ये दुरूह यात्राएँ ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहीं
तुम्हारी आँखें हर कोने में चमकती हैं
मैं सुरक्षित महसूस नहीं करता—
न शब्दों में
न धन में
न दर्पण में
ये दुरूह यात्राएँ कभी ख़त्म नहीं होतीं
और तुम्हारी आँखें मुझे हर जगह ढूँढ़ती हैं।

बार्सिलोना की दुपहरियाँ

पाठ
के हृदय में कोढ़ है

मैं ठीक हूँ। मैं बहुत
लिखता हूँ। मैं
बहुत प्यार करता हूँ।

***

रॉबर्तो बोलान्यो (28 अप्रैल 1953-15 जुलाई 2003) स्पैनिश भाषा के चर्चित कवि-कथाकार हैं। उनकी यहाँ प्रस्तुत कविताओं के अनुवाद लॉरा हीली के अँग्रेज़ी अनुवाद पर आधृत हैं। ये कविताएँ उनके कविता-संग्रह ‘द अननोन यूनिवर्सिटी’ में शामिल हैं। आदित्य शुक्ल हिंदी की नई नस्ल से वाबस्ता कवि-अनुवादक-गद्यकार हैं। उनसे shuklaaditya48@gmail.com पर बात की जा सकती है।
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सपने में मैं सपना देख रहा था

‘साहित्य पूरी तरह आत्मकथाओं से भरा पड़ा है’

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