रॉबर्तो बोलान्यो की कविताएं ::
अनुवाद और प्रस्तुति : उदय शंकर

रॉबर्तो बोलान्यो (28 अप्रैल 1953 – 15 जुलाई 2003) का जन्म चिली के सैंटियागो शहर में हुआ था. उनके पिता ट्रक ड्राइवर, बॉक्सर और शिक्षक थे. जवानी के दिनों में बोलान्यो मैक्सिको के शहर मैक्सिको चले गए और पढ़ाई छोड़कर पत्रकारिता के साथ-साथ वामपंथी रुझान की राजनीति करने लगे. उन्होंने अपनी प्रसिद्धि के चरम को स्पेन जाकर ही पाया, वहीं उन्होंने शादी की और वहीं रहते हुए संसार से विदा हुए.

रॉबर्तो बोलान्यो की ख्याति तो उनके ‘महाकाव्यात्मक’ उपन्यासों की वजह से है, लेकिन अपनी लेखकीय वृत्ति की शुरुआत उन्होंने कविताओं से ही की. वह स्पैनिश के सबसे अधिक पढ़े जाने वाले उपन्यासकारों में शामिल तो हैं ही, साथ ही साथ अपने बोहेमियन व्यवहार के चलते विवादास्पद और चर्चित रहे हैं.

वह दौर नेरुदा की प्रसिद्धि के चरम का था. स्पैनिश कवि-संसार नेरुदा को लेकर बंटा हुआ था. एक तबके का मानना था कि नेरुदा अपनी प्रसिद्धि के झोंक में सस्ती भावनाओं को सहलाने का उपक्रम कर रहे हैं. ऐसे ही तबके का नेतृत्व उस समय के प्रसिद्ध कवि निकानोर पार्रा कर रहे थे. रॉबर्तो बोलान्यो का रिश्ता इस तबके से ही था.

रॉबर्तो बोलान्यो की कविताओं के यहां प्रस्तुत अनुवाद लोरा हेल्ली के अंग्रेजी अनुवादों पर आधृत हैं. इन्हें पढ़ने से पहले मेरे दोस्त और प्रसिद्ध पटकथा लेखक मयंक तिवारी का यह कथ्य रॉबर्तो बोलान्यो के मूड को पकड़ने में मदद दे सकता है. पढ़ें :

‘‘सत्तर के शुरू की बात है शायद. मैक्सिको शहर में, या शायद कोई और लातिन अमेरिकी शहर रहा होगा, एक कवि-सम्मलेन हो रहा था. कवि आते जा रहे थे और कविता कभी निलंबित, कभी जलील होती जा रही थी. तमाशे के आदी लोग, जो कुछ सुनाई दे रहा था उसे कविता जान खुश थे. अचानक सभा में एक बरगलाया-सा लड़का ऐसे घुसा मानो अभी अपने बस्ते से बंदूक निकाल सब कवियों का मुंह ‘वंस एंड फॉर आल’ बंद कर देगा. जैसे ही लड़के ने हाथ बस्ते में डाला चूहों और कवियों में फर्क में करना कठिन हो गया. थैंकफुली चूहे मौका देख फरार हो गए. लड़के की आंखों में खून था— कुछ नशे के और कुछ नींद के कारण. उसने बस्ते में हाथ डाला और कागज का एक पर्चा निकाल उसे जोर-जोर से पढ़ने लगा. लड़का कवि निकला. चीख-चीखकर लड़का जिसे पढ़ रहा था, वह उसकी कविता नहीं, बल्कि भविष्य की उसकी कविताओं का घोषणा-पत्र था. लड़का पढ़ता रहा, लोग सुनते रहे. फिर अंतरिक्ष के किसी दूर कोने से आए धूमकेतु की तरह अपना प्रकाश बांट वह लड़का अंतर्ध्यान हो गया.

वह लड़का बोलान्यो था.’’

रॉबर्तो बोलान्यो

स्वप्न में

एक

मेरे सपने में
पृथ्वी समाप्त हो गई थी
अंत में सिर्फ फ्रांज काफ्का ही बचा था
जो विचारमग्न था

स्वर्ग में सब
मरने-मारने पर उतारू थे
और सेंट्रल पार्क में लोहे की बेंच पर बैठा
काफ्का दुनिया को जलते हुए देख रहा था

दो

सपने में
मैं सपने में हूं
और घर आते-आते देर हो गई थी
आते ही पाया कि मारियो जा सा करनेरु1बीसवीं शताब्दी के शुरुआती वर्षों के एक पुर्तगाली कवि, जो मात्र छब्बीस साल की उम्र में ही दुनिया से विदा हो लिए. मेरी पहली प्रेमिका के साथ हमबिस्तर है
जैसे ही चादर हटाई
वे मृत पड़े थे
और रक्ताभ होने तक वे मेरे होंठों को काटते रहे
मैं फिर से गलियों की ओर लौट गया

तीन

सपने में
एक बांझ पर्वत की चोटी पर
एनाक्रिएन2प्राचीन यूनानी कवि. यूनान ने नौ कैनोनिकल प्रगीत कवियों की एक जो आधिकारिक सूची बनाई है, उनमें से एक. अपने महल का निर्माण कर रहा था
और फिर उसे नष्ट कर रहा था

चार

सपने में
मैं एक आदिम लैटिन अमेरिकन जासूस था
और न्यूयॉर्क में रहता था
मार्क ट्वेन3बीसवीं शताब्दी के शुरुआती वर्षों के विश्व-विख्यात अमेरिकन उपन्यासकार. ने मुझे एक आदमी के जीवन की रक्षा का कार्यभार सौंपा
शर्त यह थी कि वह चेहराविहीन हो
‘यह बहुत मुश्किल मामला है, श्रीमान ट्वेन!’
— मैंने कहा

पांच

सपने में
मैं ऐलिस शेल्डन4विज्ञान गल्प-कथाओं की विश्वविख्यात अमेरिकन लेखिका. के प्यार में था
वह मुझे नहीं चाहती थी
इसीलिए मैंने खुद को तीनों महाद्वीपों पर मारने की कोशिश की
सालों गुजर गए
अंततः जब मैं सचमुच में बूढ़ा हो चुका था
वह इशारों की तरह
न्यूयॉर्क प्रोमेनेड के आखिरी छोर पर आई
(जिन इशारों का प्रयोग विमानचालकों को जमीन पर उतरने के लिए किया जाता है)
और बोली कि वह मुझे हमेशा प्यार करती थी

छह

सपने में
एक विशाल वेसाल्ट शिलापट्ट पर
मैं और अनैस निन5क्यूबन मूल की प्रसिद्ध निबंधकार और गद्य-लेखिका. एक-दूसरे के यौनांगों को चाट रहे थे

सात

सपने में
साल 1981 के वसंत के समय
एक मंद-रौशन कक्ष में
कारसन मैककुलर्स6अमेरिकी उपन्यासकार, कहानी-लेखिका, नाटककार, निबंधकार और कवयित्री. के साथ मैं संभोगरत था
साथ ही साथ हम दोनों मूर्खों की तरह खुश थे

आठ

सपने में
मैं अपने हाईस्कूल लौट आया था
जहां अल्फूंस दूडे7फ्रांसीसी उपन्यासकार और कवि. हमारे शिक्षक थे
कुछ अतींद्रिय हरकत हुई
एहसास हुआ कि हम सपना देख रहे हैं
दूडे तात्रन पाइप पीते हुए
खिड़की से बाहर देखते रहे

नौ

सपने में
मैं सो रहा था
उसी समय मेरे सहपाठी
होबर देस्नुस8प्रसिद्ध फ्रेंच सुर्ररियलिस्ट कवि. द्वितीय विश्वयुद्ध में नाजी प्रताड़ना के शिकार. जिन्हें जर्मनी, पोलैंड और चेकोस्लोवाकिया के यातना-गृहों में रखा गया था और अंततः चेकोस्लोवाकिया तरजिनो कंसन्ट्रेशन कैंप में उन्होंने अंतिम सांस ली. को तरजिनो कंसन्ट्रेशन कैंप से
मुक्त कराने की कोशिश कर रहे थे
जब मैं जगा तो एक आवाज
मुझे हिला रही थी :
‘बोल्यान्यो जल्दी करो, जल्दी
हमारे पास हारने के लिए समय नहीं है’
जब मैं वहां गया तो
धुएं में गमगीन
खंडहर के बीच खुद को
एक आदिम जासूस की तरह खड़ा पाया

दस

सपने में
पृथ्वी के अस्तित्व में आने के तीन अरब वर्ष बाद
मनुष्यों के हाथ सिर्फ आभासी संख्याओं का तूफान आया है

ग्यारह

सपने में
मैं सपना देख रहा था
एक स्वप्न-सुरंग में
रॉक डाल्टन9अल साल्वाडोर का प्रसिद्ध राजनीतिक कार्यकर्ता, पत्रकार, निबंधकार और कवि. के सपने से मेरी भिड़ंत हो गई
एक बहादुर का स्वप्न
जो एक कमबख्त सपने के लिए मर गया

बारह

सपने में
मैं अठारह साल का था
उसी समय मैंने
अपने सबसे प्रिय दोस्त को
वाल्ट व्हिटमैन10प्रसिद्ध अमेरिकी कवि, पत्रकार, निबंधकार. अपने समलैंगिक आग्रहों के कारण भी एक अन्य तरह की चर्चाओं के केंद्र में रहते आए हैं. के साथ रतिकृत देखा
चिविदवेक्या की तूफानी शाम के बारे में सोचते हुए
उन्होंने इस रतिकर्म को आरामकुर्सी पर अंजाम दिया
वह भी अठारह साल का था

तेरह

सपने में
मैं कैदी था और बयतुस्स11प्राचीन रोम का सीनेटर, वाणिज्य दूत, चोबदार और छठी शताब्दी के शुरूआती समय का दार्शनिक. मेरा सहकैदी
अपने हाथ और कलम को
उन्हीं की परछाइयों की तरफ बढ़ाते हुए वह बोला :
‘वे कांप नहीं रहे हैं, वे कांप नहीं रहे हैं’
(थोड़ी देर बाद अपनी आवाज को स्थैर्य प्रदान करते हुए वे बोले :
‘जैसे ही वे कमीने थिओडोरिक12रोमन साम्राज्य का शासक, महान थिओडोरिक. को पहचानेंगे, वे कांपेंगे’)

चौदह

सपने में
कुल्हाड़ी की हंफनी की तरह
मैं मार्क्विस द साद13प्रसिद्ध फ्रांसीसी रईस, क्रांतिकारी राजनेता, दार्शनिक, लेखक और परपीड़न-रति के व्याख्याकार के रूप में प्रसिद्धि. का अनुवाद कर रहा था
जंगल में रहते हुए
पागल हुआ जा रहा था

पंद्रह

सपने में
चिविदवेक्या के एक शराबखाने में
पास्कल14फ्रांसीसी गणितज्ञ, धर्मशास्त्री, दार्शनिक. अपने स्फटिक स्वर के साथ
भय के बारे में बात कर रहा था :
‘चमत्कार हमें बदलते नहीं
बल्कि हमारी निंदा करते हैं’

सोलह

सपने में
मैं एक आदिम लैटिन अमेरिकन जासूस था
एक रहस्यमयी संस्था ने मुझे कार्यभार सौंपा
कि मैं उन्हें लैटिन अमेरिकन उड़न-छू का
मृत्यु-प्रमाण-पत्र प्रदान करूं
इसके लिए लिए मैंने पूरे विश्व की यात्राएं की —
अस्पतालों, युद्ध-क्षेत्रों, पल्क के शराबखानों और परित्यक्त विद्यालयों तक

***

उदय शंकर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से पढ़े हुए हैं. हिंदी के शोधार्थी और आलोचक हैं. कथा-आलोचक सुरेंद्र चौधरी की रचनाओं को तीन जिल्दों में संपादित किया है. दिल्ली में रहते हैं. उनसे udayshankar151@gmail.com पर बात की जा सकती है. प्रस्तुत कविताएं ‘सदानीरा’ के 17वें अंक में पूर्व-प्रकाशित.

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