ध्यान सिंह की कविताएँ ::
डोगरी से अनुवाद : कमल जीत चौधरी
मेरा यह जीवन
पाताल से गहरा
अम्बर से ऊँचा
पानी से तरल
हवा से गतिशील
लौ से हल्का
सोच से भी अधिक आह्लादित
भावों का चिंतन
चिंता और चेतन
उलटा या सीधा
मेरा यह जीवन
तैंता ही तैंता1विशेष/चुनिंदा/दुर्लभ/विलक्षण।।
मतदाता
वह भूखा प्यासा
वोट डालने के लिए पंक्ति में
खड़ा-खड़ा
थक गया
तो बैठ गया नीचे
एक दिहाड़ी खराब होने को सहता
वोट जल्दी डलवाने के लिए
कार्यकर्ताओं की मिन्नतें करता
आख़िर सोचने लगा :
मेरा वोट किसी दूसरे ने डाल दिया हो
इस पंक्ति से तो छुटकारा मिले…
स्पर्श
हवा का स्पर्श
लौ का स्पर्श
जल का स्पर्श
आवाज़ का स्पर्श
नज़र का स्पर्श :
देह से आत्मा को होने-जीने का
एहसास करवाता
इसे समझकर बरतना।
कोढर
माथे की बिंदी
भृकुटि नहीं तनने देती
नाक की नथली
भेद नहीं लेने देती
कानों की बाली
आवाज़ नहीं सुनने देती
बुगदियों वाला हार2डुग्गर-लोक का एक विशेष हार।
गले नहीं लगने देता
पैरों में पड़ी पायल
क़दम मज़बूत नहीं होने देती
लंबी गूँथी चोटी
पीछे ही पीछे खिंचती
जड़वाकर सोने के कंगन
जो धारण किए;
हाथों को सकत3ताक़त। नहीं देते
सिर्फ़ हथकड़ियाँ बनते…
आँखों में डाला जो सुरमा
उसे ललसाई नज़रों में एक कोढर4अमंगल/किसी अनिष्ट की आशंका से लोक-मानस द्वारा व्यवहृत संयम। कहा गया।
घुप्प अँधेरा
विचारों की सान पर चढ़ाकर
तेज़ धार लगाकर
चमक से पैने किए शब्द-बाण
अँधेरे को नहीं भेद पा रहे।
कहाँ, क्योंकर; किसे
ताड़-ताड़कर
आँख को ही करना होगा संधान
समझ की लौ से
…
वैसे कविता के आलोक में लोहड़ी, दीपावली भी
भारी दुविधा रही है।
देखना
शाहजहाँ मन की आँखों से
ताजमहल देखता था
मैं आँखों के मन से
लौ देखता हूँ
यह फ़र्क़ बूझें
क्यों शाह का देखना था निजी मामला
और मेरा देखना है साझा मसला?
आपा
मैं बड़ा बनने-दिखने के लिए
गरीबों में ही रहता हूँ
कंधों पर चढ़ा रहता हूँ
मैं नज़रों में चढ़े रहने के लिए
रोशनी में रहता हूँ
मैं बड़ा तलाशने के लिए
टीसी5शिखर। पर ही रहता हूँ
मैं अधिक फलने के लिए
वृक्ष में रहता हूँ
मैं बादल बनकर बरसने के लिए
पानी में रहता हूँ
मैं कुशल तैराकी के लिए
हवा में रहता हूँ
मैं कुछ बड़ा करने के लिए
सोच में डूबा रहता हूँ
मैं स्वयं को बर्दाश्त करने के लिए
स्वयं में ही रहता हूँ
मैं बड़ा बचा रखने के लिए
छोटों में ही रहता हूँ
मैं बड़ा होने के लिए
धरती पर ही रहता हूँ।
संकेत
एक
जैसे जलैहरी6शिवलिंग के ऊपर स्थापित कुंभ, जिसमें से बूँद-बूँद पानी गिरता रहता है। से पानी गिरता है
टप-टप
वैसे त्रैहड़ी7मुखाग्नि देने से पहले तोड़ा जाने वाला घड़ा, जिसमें से बूँद-बूँद पानी गिरता रहता है। से पानी गिरता है
टप-टप…
दो
घर नहीं, रैन बसेरा ढूँढ़
नीला कच्चा आँगन ढूँढ़ :
सोच चाँद की ओठ मूँद।
तीन
दुःख के पोतड़े
कभी नहीं धोए गए :
जितने धोए, दाग़ उतने उघड़ते गए।
चार
घातक लहरों से लड़ते-बचते
डूब, निकल;
किनारों को तू हाथ लगा :
लहरों जैसे सिर उठा।
ध्यान सिंह (जन्म : 1939, जम्मू के घरोटा गाँव में) डोगरी के वरिष्ठ कवि-लेखक और अनुवादक हैं। इनका लेखन सामाजिक और राजनीतिक चेतना से लैस है। इन्होंने डुग्गर-लोक के बीच रहकर, लोक-संस्कृति के संरक्षण हेतु पर्याप्त कार्य किया है। विभिन्न साहित्यिक विधाओं में इनकी तीस से अधिक किताबें प्रकाशित हैं। इन्होंने ‘कल्हण’ का डोगरी में अनुवाद भी किया है। 2009 में इन्हें ‘परछामें दी लो’ शीर्षक कविता-संग्रह पर साहित्य अकादेमी और 2014 में बाल साहित्य पुरस्कार मिला है। कमल जीत चौधरी हिंदी कवि-लेखक और अनुवादक हैं। उनसे और परिचय के लिए यहाँ देखें : सिवाय कविता के मैं किसी का प्रिय कवि नहीं हूँ
बहुत अच्छी कविताएं और अनुवाद
पाद टिपण्णियां जिनमें डोगरी शब्दों के अर्थ दिए गए हैं, नहीं दिख रहे हैं।
अनूप जी, दी गई संख्या पर क्लिक करेंगे तो अर्थ दिखाई देगा।
मेरे लिए यह रहस्योद्घाटन जैसा ही है।