इराज ज़ियाई की कविताएँ ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद : जितेंद्र कुमार त्रिपाठी

इराज ज़ियाई

किराए के घरों में

किराए के घरों में
जब तुम उतारते हो अपनी क़मीज़
और टाँग देते हो उन्हें ज़ंग लगी कीलों पर
फिर पहन लेते हो
अपनी थकी हुई चमड़े की चप्पल
और रुक जाते हो यकायक थोड़े समय के लिए

तुम्हारे इस इंतज़ार ने भर दिया है
उस लकड़ी की कुर्सी का इंतज़ार भी
अपनी आखें थोड़े समय के लिए
बंद कर फिर खोल लेते हो
तुम्हें नहीं पता है
तुम किस घर में हो
कविता लिखने के लिए
ख़त्म होती चीज़ों पर।

ब्रह्मांड के मध्य

हर सुबह जब तुम खोलते हो अपनी आँखें
सारी वस्तुएँ भी खोल लेती हैं अपनी आँखें
ये ट्यूबलाइट
ये किताब
ये चाय की प्याली
ये मेज़ और क़लम और माचिस का डब्बा
ये सब ब्रह्मांड का केंद्र है
जो है हमारे घर में
पर हमारा नहीं है।

तेहरान ख़त

यह डाकिया छोड़ गया है
थोड़ा आकाश
कुछ सितारे
और थोड़े दुआ-सलाम मेरी हथेली पर
मैं हर बार लौट जाता हूँ
संख्या उनचास पर
देखने उस नदी को जो बहती नहीं अब

सुनाई देती है कमरे के मध्य तक मुझे
चिड़ियों की बोली जो बैठी है
खिड़की के पीछे

अगर तुम खोलोगे इस खिड़की को
तो देख पाओगे
उस दूसरी पंक्ति को
जो डाकिये ने लिखी थी लिफ़ाफ़े पर
सब शांत है—
पश्चिम अन्दिशेह-2 पर…

बच्चे और सूरज

वे कब आए फुटपाथ पर और बैठ गए?
कैसे उन्होंने पार किया
इन मकानों, सीढ़ियों और रास्तों का अँधेरा?
कैसे वे बिखरा जाते है यादें
सीढ़ी-दर-सीढ़ी
और फिर लौट जाते है?
हर सुबह
जुलाहे, बढ़ई और मरम्मत करने वालों ने
उन्हें रुककर देखा
पर पहचान न पाए अपने घरों से
ख़रीदारी करने निकली औरतें
गुज़री उनके पास से
तभी बच्चों और सूरज के बीच से
निकलती एक रौशनी
जवान कर गई
पुरानी कुर्सियों को।


इराज ज़ियाई (जन्म : 1949) समादृत ईरानी कवि हैं। उनकी यहाँ प्रस्तुत कविताएँ अँग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद करने के लिए poetrytranslation.org से चुनी गई हैं। जितेंद्र कुमार त्रिपाठी हैदराबाद की बहुराष्ट्रीय संस्थान में सॉफ़्टवेयर इंजीनियर हैं। वह कविता और उसके अनुवाद में रुचि रखते हैं। उनसे jitendrakt2010@gmail.com पर बात की जा सकती है।

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