शरयू असोलकर की कविताएँ ::
मराठी से अनुवाद : सुनीता डागा

शरयू असोलकर

आदत

उसकी आवाज़
कभी खुल कर
आसमान तक पहुँची ही नहीं

आसमान भी कभी उन्मुक्तता से
उसके माथे पर बरसा नहीं

फिर भी खिला ही दिए उसने
दो-चार पलों के कुछ फीके फूल
और ग़द्दार हवा ने
उनकी पंखुड़ियों को
उड़ाते हुए भी देख लिया

फिर भी
लेती रही है वह
ख़ामोश साँसों को
एक आदत से भर कर।

आज तक पी हुई

आज तक पी हुई
प्यास रिसती है
देह के पोर-पोर से
और भर जाता है वातावरण
मिट्टी की गंध से

आज तक जमा किए गए अक्षर
अपने-आप ही
आँचल से ढुलते हैं
और सदियों की व्यथा-कथाओं के
गवाह बनते हैं

आज तक गले से लगाया भय
छोड़ जाता है
भय-चकित होकर
और गद्गद् हुआ मन
ख़ाली होता है गहरे कहीं भीतर

आज तक गूँथ कर रखे फूल
सूखे-शुष्क होकर
झड़ रहे हैं पंखुड़ी-पंखुड़ी
वे जैसे पूरे समय को ही
निर्माल्य बना जाते हैं

आज तक रोप कर रखे हुए
बीज फूट रहे हैं लपटों की धधक से
कठिन कवच को भेद कर
और लहलहाती कोंपल का गीत
आता है उग कर।

लापता

शब्दों को जला देती हूँ मैं
अपने अस्तित्व की
ज़रूरत के लिए

और बाद के सुनसान वीराने में
सुनती रहती हूँ
मन के सागर का उठता शोर

धीरे-धीरे घना
होता जाता है
शाम का झुटपुटा

हाथों में सिर्फ़ रेत
और जीवन
लापता!

सुनो कविते!

यूँ ही मत चली आना
कि चलो लगे हाथ तैयार हैं शब्द
नहीं सही जाती है मुझसे
तुम्हारी होती हुई टूट-फूट
ऊपर से मेरी ही
हथेलियों की
उदास रेखाओं की जद्दोजहद
नहीं सुनाऊँगी कभी भी
आँसुओं के होने की कहानी
बस तुम मत चली आना
इन निरीह बेसहारा पलों में
मैं ढहा दूँगी
मेरे मन में बढ़ती जाती
सनातन दीवारों को
तुम अपने प्राणों को सँभालना
मेरे पास आने से पहले
कविते!


शरयू असोलकर (जन्म : 1967) सुप्रसिद्ध मराठी कवयित्री हैं। उनके ‘पुढल्या हाका’ और ‘अनवट वाटा’ शीर्षक कविता-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उनसे asolkarsharayu@yahoo.in पर बात की जा सकती है। सुनीता डागा मराठी-हिंदी लेखिका-अनुवादक हैं। उन्होंने समकालीन मराठी स्त्री कविता पर एकाग्र ‘सदानीरा’ के 22वें अंक के लिए मराठी की 18 प्रमुख कवयित्रियों की कविताओं को हिंदी में एक जिल्द में संकलित और अनूदित किया है। यह प्रस्तुति ‘सदानीरा’ के 22वें अंक में पूर्व-प्रकाशित।

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