अफ़ज़ाल अहमद सय्यद की नज़्में ::
उर्दू से लिप्यंतरण : मुमताज़ इक़बाल
अगर मैं किसी को याद रह सका
सर्दियाँ आ गईं
क़ैदियों को ऊनी कंबल फ़राहम करने का
इश्तिहार दुबारा निकल आया
रातें अपनी लंबाई चौड़ाई और वज़्न
तब्दील कर चुकी हैं
मगर मुझे हर रात एक ख़्वाब आता है
सलाख़ों से निकलते हुए गिरिफ़्तार कर लिए जाने का
मौसमों की तब्दीली के दौरान
जो वक़्त पैमाइश में गिरिफ़्तार नहीं हो पाता
उसमें मैं एक नज़्म पढ़ता हूँ
ये नज़्म मेरे भाई ने
जंग पर जाते हुए लिखी थी
जो ज़िंदा वापस नहीं आया
मगर मैं उससे ज़ियादा ज़िम्मेदार आदमी हूँ
अपनी मीआद पूरी होने तक ज़िंदा रहना चाहता हूँ
मुझे मालूम है
मशीनें भूखी हैं
और कुत्ते बे-रातिब पड़े हैं
मुझे मालूम है
बर्फ़ और बादल बहुत मासूम होते हैं
और पहाड़ बेहद मज़बूत
मुझे मालूम है
जो लोग पहाड़ों पर रहते हैं
बहुत ग़रीब होते हैं
और सर्दियाँ उन्हें और ज़ियादा ग़रीब बना देती हैं
बारिशों में दीवारों पर बहुत कम बातें लिखी जा सकती हैं
मगर अब सर्दियाँ आ गई हैं
अगर मैं किसी को याद रह सका होता
जैसे वो लड़की जो मेरी नज़्में पढ़ते हुए रो देती है
तो दीवार पर मुझे रिहा कराने के बारे में
कुछ लिखा जा सकता था
मुझे मालूम है
मेरी नज़्में ज़ेर-ए-समाअत रह जाएँगी
मुझे मालूम है
मेरे दिल को
जो यहाँ से कहीं ज़ियादा ठंडे फ़र्श और दीवार में क़ैद है
कोई ज़मानत पर रिहा कराने नहीं आएगा
मुझे मालूम है
ऊनी कंबलों की फ़राहमी मुकम्मल होते-होते
सर्दियों का मौसम गुज़र जाएगा
ये कोई ग़ैर-मामूली बात नहीं
ये कोई ग़ैर-मामूली बात नहीं
कि मेरी तलाशी ली गई
और मेरे दिल को छीन लिया गया
और न ये कि
मुझे बाहर निकालने के लिए
मेरे घर को आग लगा दी गई
और न ये कि
कुत्ते पकड़ने की क़ैंची मेरी कमर में फँसाकर
मुझे ट्रक में डाल दिया गया
और न ये कि
जलते हुए कोयले को
अपनी मुठ्ठी में छुपाकर मैंने पूछा :
मेरे हाथ में क्या है?
और तुम कोई जवाब न दे सकीं
कौन शाइर रह सकता है
लफ़्ज़ अपनी जगह से आगे निकल जाते हैं
और ज़िंदगी का निज़ाम तोड़ देते हैं
अपने जैसे लफ़्ज़ों का गठ बना लेते हैं
और टूट जाते हैं
उनके टूटे हुए किनारों पर
नज़्में मरने लगती हैं
लफ़्ज़ अपनी साख़्त और तक़दीर में
कमज़ोर हो जाते हैं
मामूली शिकस्त उनको ख़त्म कर देती है
उनमें टूटकर जुड़ जाने से
मोहब्बत नहीं रह जाती
उन लफ़्ज़ों से बदसूरत
और बे-तरतीब नज़्में बनने लगती हैं
सफ़्फ़ाकी से काट दिए जाने के बाद
उनकी जगह लेने को
एक और खेप आ जाती है
नज़्मों को मर जाने से बचाने के लिए
हर रोज़ उन लफ़्ज़ों को जुदा करना पड़ता है
और उन जैसे लफ़्ज़ों के हमले से पहले
नए लफ़्ज़ पहुँचाने पड़ते हैं
जो ऐसा कर सकता है
शाइर रह सकता है
रौशनी
हमारे शहर में
मसरूफ़ सड़क के किनारे
लड़कियाँ पुरानी ब्रेज़ियर्ज़ ख़रीद रही हैं
वो आपस में आँखें नहीं मिलातीं
ढेर में उनके हाथ एक-दूसरे को छू जाते हैं
किसी हुक में फँसकर
वो दूर तक खिंचती हुई चली जाती हैं
हर इस्तिमाल की हुई शय में
एक कहानी
ख़रीदने वाले को मुफ़्त मिलती है
सड़क पर पड़ी ब्रेज़ियर्ज़ के ढेर में
वो जिस्म हैं
जो पुर-असरार होना ख़त्म कर चुके
और
एक रौशनी
नज़्म
जो बातें मैं उससे कहना चाहता हूँ
वो कहती है
अपनी नज़्म से कह दो
मेरी नज़्म
उसका इंतिज़ार कर सकती है
उसे चूम सकती है
और अगर वो तन्हा हो तो
उसके साथ चल सकती है
मुझे अपनी नज़्म पर ग़ुस्सा आता है
वो उसके पास चली जाती है
उसे वो
अच्छा या बुरा कह सकती है
मेज़ पर छोड़ सकती है
या पर्स में डालकर ले जा सकती है
मुझे अपनी नज़्म पर ग़ुस्सा आता है
जब वो उसके पास चली जाती है
जब मैं शाइरी करना चाहता हूँ
अपने पसंदीदा मौसम के शुरू होने पर
या उस लड़की पर
जिसे साइकियाट्रिस्ट ने
बर्क़ी सदमे की मिक़दार ज़ियादा दे दी
और वो मुझे भूल गई
मैं नज़्म लिखकर समुंदर में बहा देता हूँ
और वो उसके पास पहुँच जाती है
हवा में बिखेर देता हूँ
और वो उसके पास पहुँच जाती है
आतिशदान में डाल देता हूँ
और वो उसके पास पहुँच जाती है
वो मेरी नज़्म का इंतिज़ार करती है
उसे चूमती है
उसके साथ चलती है
और मेरे पास से गुज़र जाती है
मैं डरता हूँ
मैं डरता हूँ
अपने पास की चीज़ों को
छूकर शाइरी बना देने से
रोटी को मैंने छुआ
और भूख शाइरी बन गई
उँगली चाक़ू से कट गई
और ख़ून शाइरी बन गया
गिलास हाथ से टूटकर गिर गया
और बहुत-सी नज़्में बन गईं
मैं डरता हूँ
अपने से थोड़ी दूर की चीज़ों को
देखकर शाइरी बना देने से
दरख़्त को मैंने देखा
और छाँव शाइरी बन गई
छत से मैंने झाँका
और सीढ़ियाँ शाइरी बन गईं
इबादत-ख़ाने पर मैंने निगाह डाली
और ख़ुदा शाइरी बन गया
मैं डरता हूँ
अपने से दूर की चीज़ों को
सोचकर शाइरी बना देने से
मैं डरता हूँ
तुम्हें सोचकर
देखकर
छूकर
शाइरी बना देने से
सुर्ख़ पत्तों का एक दरख़्त
नहीं देखा होगा तुमने अपने आपको छत से लगे हुए आईने में
सुर्ख़ पत्तों से भरे एक दरख़्त के नीचे
नहीं बढ़ाई होंगी तुमने अपनी उँगलियाँ
दरख़्त से पत्ते और अपने बदन से लिबास उतारने के लिए
आदमी दरख़्त से ज़ियादा ख़ूबसूरत है
नहीं कहा होगा किसी ने तुम्हें चूमकर
दरख़्त को टुकड़े-टुकड़े करने के बाद
नहीं उठाया होगा तुमने लकड़ी का गट्ठर
नहीं जाना होगा तुमने कटी हुई शाख़ में पानी का वज़्न
आग दरख़्त से ज़ियादा ख़ूबसूरत है
नहीं कहा होगा किसी ने
अलाव के क़रीब तुम्हें अपने सीने से लगाकर
नहीं दिया होगा किसी ने तुम्हें अपना दिल
सुर्ख़ पत्तों का एक दरख़्त
मोहब्बत
मोहब्बत कोई ज़ियादा नुमायाँ निशान नहीं
जिससे लाश की शिनाख़्त में आसानी हो
जब तक तुम मोहब्बत को दरयाफ़्त कर सको
वो वैन रवाना हो चुकी होगी
जो उन लाशों को ले जाती है
जिन पर किसी का दावा नहीं
शायद वो रास्ते में
तुम्हारी सवारी के बराबर से गुज़री हो
या शायद तुम उस रास्ते से नहीं आईं
जिससे मोहब्बत में मारे जाने वाले ले जाए जाते हैं
शायद वो वक़्त
जिसमें मोहब्बत को दरयाफ़्त किया जा सकता
तुमने किसी जबरी मश्क़ को दे दिया
पत्थर की सिल पर लिटाया हुआ वक़्त
और इंतिज़ार की आख़िरी हद तक खिंची हुई
सफ़ेद चादर
तुम्हारी मश्क़ ख़त्म होने से पहले तब्दील हो गए
शायद तुम्हारे पास
इत्तिफ़ाक़िया रुख़्सत के लिए कोई दिन
और मोहब्बत की शिनाख़्त के लिए
कोई ख़्वाब नहीं था
उस वक़्त तक जब तुम
मोहब्बत को अपने हाथों से छूकर देख सकतीं
वो वैन रवाना हो चुकी होगी
जो उन ख़्वाबों को ले जाती है
जिन पर किसी का दावा नहीं
अगर तुम तक मेरी आवाज़ नहीं पहुँच रही
अगर तुम तक मेरी आवाज़ नहीं पहुँच रही है
उसमें एक बाज़गश्त शामिल कर लो
पुरानी दास्तानों की बाज़गश्त
और उसमें
एक शाहज़ादी
और शाहज़ादी में अपनी ख़ूबसूरती
और अपनी ख़ूबसूरती में
एक चाहने वाले का दिल
और चाहने वाले का दिल में
एक ख़ंजर
एक नई ज़बान का सीखना
समुंदर के क़रीब
एक इमारत में
जहाँ मेरे और पड़ोस के कुत्ते के सिवा
कोइ तन्हा नहीं पहुँचता
मैं एक नई ज़बान सीख रहा हूँ
अपने आपसे बातें करने के लिए
नज़्म
तुम आ जाती हो
हर रोज़ नए लिबास में
अपनी ख़ूबसूरत आँखों को
एक नई ज़बान सिखाने के लिए
तुम्हारी झुकी हुई गर्दन
शाने के दरमियान
मुझे अपने दिल के लिए
एक नया शिकंजा मिल जाता है
खिड़की से बाहर देखते हुए
तुम्हारी आँखें
मेरे चेहरे पर ठहर जाती हैं
नया जुमला बोलते हुए
मेरी ज़बान
तुम्हारे दाँतों के नीचे आ जाती है
शायद
हम इस खिड़की से
समुंदर की तरफ़
मलबाफ़रोशों के हुजूम को
(जो एक जहाज़ को तोड़ रहा है)
नज़रअंदाज़ करते हुए
दूर तक साथ चल सकते हैं
शायद हम इस पुल से गुज़र सकते हैं
जिसे मख़्दूश क़रार दे दिया गया है
और उन पंजों पर बैठ सकते हैं
जिनका रंग अभी नहीं सूखा
नज़्म
जहाँ तुम ये नज़्म ख़त्म करोगी
वहाँ एक दरख़्त उग आएगा
शिकार की एक मुहिम में
तुम उसके पीछे एक दरिंदे को हलाक करोगी
कश्तीरानी के दिन
उससे अपनी कश्ती बाँध सकोगी
एक इनआम-याफ़्ता तस्वीर में
तुम उसके सामने खड़ी नज़र आओगी
फिर तुम उसे
बहुत-से दरख़्तों में गुम कर दोगी
और उसका नाम भूल जाओगी
और ये नज़्म
तुम एक बोसा हो
तुम ख़ून और लकड़ी के बुरादे से भरी
प्रोसीनियम पर लिया हुआ
एक बोसा हो
तुम्हारी ख़ूबसूरती पर
हेलन को तक़सीम
और स्पार्टा को तबाह किया जा सकता है
एक मातूब ज़िंदगी
जो एक दिन
चक्के पर तोड़ दी जाएगी
तुम्हें जानने के बाद
ना-मुनासिब नहीं लगती
नज़्म
हर रोज़
मैं एक बार फिर
तुम्हारी मोहब्बत में गिरिफ़्तार हो जाता हूँ
दार-उल-हुकूमत में ख़िज़ाँ थी
और यख़ज़दा ख़याबान में
मैं तुम्हारा हाथ थामे भटक रहा था
हर मोड़ पर तुम्हारा बोसा लेते हुए
होटल के कमरे में
हल्के सब्ज़ कंबल के नीचे
तुम मेरे साथ थीं
ये बिल्कुल तुम थीं
जिसे मैं अपने पसंदीदा शाइर की नज़्में
पढ़कर सुना रहा था
जब शाम पड़ रही थी
मेज़बान
तुम एक अच्छी मेज़बान हो
मेरे लिए वो सेब ले आती हो
जिस पर तुम्हारे दाँतों के निशान हैं
और ख़ूनआलूद अनार
और एक नज़्म
और एक छुरी
जो चीज़ों को टेढ़ा काटती है
मोहब्बत
तुम्हारे क़दमों के लिए
मेरा दिल
उस पुल की तरह है
जो पानी की सतह से नीचे रह गया
मैंने अपने आपको
उस कुत्ते की तरह बे-वक़अत कर दिया
जो नए मालिक को अपना नाम नहीं बता सकता
और पुराना मालिक किसी हादसे में मारा जा चुका
मैंने अपने आप को नाकाम कर दिया
ख़ुद को एक दर्दनाक मौत तक ले जाने
और एक फ़ुहश बाज़ारी नौहा तरतीब देने में
जिसे तुम अपना कोई आँसू ख़ुश्क करने के लिए
सफ़ेद रूमाल की जगह इस्तिमाल कर सकतीं
मेरे जूतों में राख भरी है
और मेरे पैर ग़ायब हैं
मोहब्बत कोई अलम
कोई हथियार, कोई हलफ़ नहीं
कि आसानी से उठा लिया जाता
मेरे दिल में राख भरी है
और एक अजनबी ज़हर
मोहब्बत एक जाल है
जिसमें राख भरी है
और मेरे दोनों हाथ
मैंने अपने आपको ज़ाये कर दिया
उस बारिश के इंतिज़ार में
जो मेरे पैरों, मेरे दिल, मेरे हाथों को
बहा ले जाए
और तुम इनसे कोई यादगार बनाकर
उसका नाम मोहब्बत रख सको
तुम नींद में बहुत ख़ूबसूरत लगती हो
तुम नींद में बहुत ख़ूबसूरत लगती हो
तुम्हें सोते में चलना चाहिए
तुम्हें सोते में डोरियों पर चलना चाहिए
किसी छतरी के बग़ैर
क्योंकि कहीं बारिश नहीं हो रही है
सिर्फ़ ग़ैर-अहम शाइर
सिर्फ़ ग़ैर-अहम शाइर याद रखते हैं
बचपन की फ़ीरोज़ी
और सफ़ेद फूलों वाली तामचीनी की प्लेट
जिसमें रोटी मिलती थी
सिर्फ़ ग़ैर-अहम शाइर
बेशर्मी से लिख देते हैं
अपनी नज़्मों में
अपनी महबूबा का नाम
सिर्फ़ ग़ैर-अहम शाइर याद रखते हैं
बदतमीज़ी से तलाशी लिया हुआ एक कमरा
बाग़ में खड़ी हुई एक लड़की की तस्वीर
जो फिर कभी नहीं मिली
वो आदमी जिसे लड़कियों की जिल्द पसंद थी
वो आदमी जिसे लड़कियों की जिल्द पसंद थी
अपनी पोर्नोग्राफ़ी की किताबों पर मढ़ने के लिए
उसने फ़ौज के एक भगोड़े को
एक महकूम लड़की की ज़िंदा खिंची हुई खाल
हासिल करने की तर्ग़ीब दी
मज़्कूरा भगोड़ा
सिंध से दो बार गुज़रा
हमें पोर्नोग्राफ़ी की किताबों को
एहतियात से छूना चाहिए
मुझे एक कहानी सुनाओ
मुझे एक कहानी सुनाओ
इसके अलावा कि तुम मुझसे हामिला हो गई हो
इसके अलावा कि तुम उस लड़की से ज़ियादा ख़ूबसूरत हो
जो मुझे छोड़कर चली गई है
इसके अलावा कि तुम हमेशा सफ़ेद ब्लाउज़ के नीचे
सफ़ेद ब्रेज़ियर पहनती हो
मुझे एक कहानी सुनाओ
इसके अलावा कि आईने ने सबसे ख़ूबसूरत किसे बताया था
इसके अलावा कि आईने में नज़र आने वाली हर शय ख़ूबसूरत होती है
इसके अलावा कि ग़ुलाम लड़कियों के हाथों से
शाहज़ादियों के आईने कैसे गिर जाते थे
इसके अलावा कि शाहज़ादियों के हमल कैसे गिर जाते थे
इसके अलावा कि शहर कैसे गिर जाते थे
और फ़ैसल
और अलम
और मुक़ाबला करते हुए लोग
मुझे एक कहानी सुनाओ
इसके अलावा कि डेट-लाइन से गुज़रते हुए
तुम कप्तान के केबिन में नहीं सोईं
इसके अलावा कि तुमने कभी समुंदर नहीं देखा
इसके अलावा कि डूबने वालों की फ़ेहरिस्त में कुछ नाम
हमेशा दर्ज होने से रह जाते हैं
मुझे एक कहानी सुनाओ
इसके अलावा कि बिछड़ी हुई जुड़वाँ बहनें ब्रूथल में
एक-दूसरे से कैसे मिलीं
इसके अलावा कि कौन-सा फूल
किस शख़्स के आँसुओं से उगा
इसके अलावा कि कोई जलते हुए
तंदूर से रोटियाँ नहीं चुराता
मुझे एक कहानी सुनाओ
इसके अलावा कि सुल्हनामे की मेज़ अजायब घर से कैसे ग़ायब हो गई
इसके अलावा कि एक बर्र-ए-आज़म को ग़लत नाम से पुकारा जाता है
मुझे एक कहानी सुनाओ
इसके अलावा कि तुम्हें होंठों पे बोसा देना अच्छा नहीं लगता
इसके अलावा कि मैं तुम्हारी ज़िंदगी में पहला मर्द नहीं था
इसके अलावा कि उस दिन बारिश नहीं हो रही थी
अफ़ज़ाल अहमद सय्यद [जन्म : 1946] उर्दू अदब में नस्री नज़्म के सबसे अहम और मोतबर शाइरों में शुमार होते हैं। उनकी यहाँ प्रस्तुत नज़्में उर्दू से हिंदी में लिप्यंतरित करने के लिए उनके कुल्लियात-ए-नज़्म ‘मिट्टी की कान’ से ली गई हैं, जिसे अजमल कमाल ने प्रकाशित किया है। मुमताज़ इक़बाल से परिचय के लिए यहाँ देखिए : मुमताज़ इक़बाल
प्रस्तुत नज़्में पढ़ते हुए मुश्किल लग रहे शब्दों के अर्थ जानने के लिए यहाँ देखिए : शब्दकोश
बहुत सुन्दर ❤️