ज़ीशान साहिल की नज़्में ::
उर्दू से लिप्यंतरण : मुमताज़ इक़बाल
ख़्वाब
मोहब्बत और ख़ुशी
जो मुझे नहीं मिली और मेरे पास है
मैं ख़्वाब देखता हूँ
पस मंज़र में तुम्हारा चेहरा
और मेरा अकेलापन
पुरानी सीढ़ियाँ चढ़ता रहता है
किताबें बंद होती रहती हैं
भूली हुई नज़्में, ख़ुश्क बादल, बेतरतीब लोग
और दीवारें
मैं ख़्वाब देखता हूँ
ख़्वाब हर रात सफ़र करते हैं
सितारे पानी में गिरते हैं
और ख़ाली कश्तियाँ फूलों से भर जाती हैं
मैं ख़्वाब देखता हूँ
मगर शायद तुम ख़्वाब नहीं देखतीं
फूलों के लिए नज़्म
फूल खिले हुए हैं
रेलवे लाइन के साथ-साथ
और एयरपोर्ट पर रनवे के क़रीब
चर्च के अहाते और फ़्लैट की बालकनी में
पानी के किनारे और खेतों की मुँडेरों पर
ख़्वाबों के मैदान और तुम्हारी आँखों में
फूल सजे हुए हैं
मेज़ पर मुंतज़िर गुलदान में
हॉस्पिटल के लॉन में
जंगी मश्क़ों से वापस आने वाले टैंकों
और सिपाहियों की बंदूक़ों की नालों में
और तुम्हारे बालों में
फूल रक्खे हुए हैं
तुम्हारे पर्स और मेरे दिल में
पुरानी डायरी और ऑटोग्राफ़-बुक में
किताबों के दरमियान
और मेज़ की दराज़ में बिछे काग़ज़ के नीचे
फूल रक्खे हुए हैं—
तोहफ़ों की दुकान और नई पुरानी क़ब्रों पर
कहानी
मैंने एक कहानी सोची है
मैं इसे कभी नहीं लिखूँगा
लिखी हुई कहानियाँ पढ़कर
लोग बहुत-सी बातें फ़र्ज़ कर लेते हैं
और फ़र्ज़ी कहानियाँ लिखनी शुरू कर देते हैं
मैंने ये कहानी इससे पहले किसी से नहीं सुनी
कहीं पढ़ी नहीं और फ़र्ज़ भी नहीं की
इसके किरदार कहानी शुरू होने से पहले
या शायद बाद में मर चुके हैं
वे एक-दूसरे से कभी नहीं मिले
या शायद हमेशा साथ रहे हैं
मैं उनके बारे में यक़ीन से कुछ नहीं कह सकता
ग़ैर-फ़र्ज़ी कहानियों के बारे में
कोई भी यक़ीन से कुछ नहीं कह सकता
उनमें सब कुछ ख़ुदा की तरह ग़ैर-यक़ीनी
मौत की तरह अचानक
और कभी-कभी मोहब्बत की तरह
ख़ूबसूरत और ग़ैर-मुतवक़्क़े होता है
इस कहानी की कहानी यूँ शुरू…..
मगर ऐसी कहानियाँ किसी को सुनाई नहीं जातीं
वरना लोग ख़ुद को उनका किरदार समझने लगते हैं
या शायद ऐसा होता भी है
ये कहानी मेरे पास दुश्मन की कमज़ोरियों के राज़
और ताश के खेल में तुरुप के पत्तों की तरह है
मैं इसे कभी नहीं लिखूँगा
इसे किसी को नहीं सुनाऊँगा
इसके किरदारों और ख़ुद को भी नहीं
अपने दोस्तों और उस लड़की को भी नहीं
जिसके लिए मैंने एक कहानी सोची है
मोहब्बत
लड़कियों के लिए
मोहब्बत करना उतना ही मुश्किल है
जितना दरख़्त के तने की मदद से
कोई पहाड़ी नाला पार करना
या किसी भीगे हुए काग़ज़ का सुखाना
मगर ज़रा-सी एहतियात से ये सब काम मुमकिन हैं
लड़कियाँ तो अपनी किताबों पे
किसी का नाम भी नहीं लिखतीं
कोई भी शख़्स किसी का नाम जानते हुए
उसे लिखे बग़ैर नहीं रह सकता
मैं भी एक लड़की का नाम जानता हूँ
आख़िरी ख़्वाहिश
नज़्मों की किताब में
लोगों को उसकी आख़िरी ख़्वाहिश मिली,
उसने लिखा था
मेरी आँखें उस गुलूकार को दे देना
जो अपने मद्दाह और रंग देखना चाहता हो
और मेरा दिल उस मुजस्सिमासाज़ के लिए है
जो अपना दिल
किसी मुजस्सिमे में रखकर भूल गया हो
मेरे हाथ उस मल्लाह की अमानत हैं
जिसके हाथ उन दिनों काट दिए गए थे
जब कश्तियाँ जला दी गईं
और दरिया पार कराना सबसे बड़ा जुर्म
उसने कुछ लोगों को दूसरे किनारे तक पहुँचा दिया
वापसी पर सरकारी कारिंदे उसके मुंतज़िर थे
वो अपने हाथों के बारे में कुछ नहीं बताता
मगर मैं उन लोगों में शामिल था
जो उसकी कश्ती में दूसरे किनारे तक गए थे
आँखें, दिल और हाथ
किसी भी शख़्स को ज़िंदा रख सकते हैं
और मार सकते हैं
मौत की आँखें
हम उन्हें देखते हैं
मरीज़ या ताबूत ले जाने वाली गाड़ी के धुएँ
तेज़ जलती-बुझती रौशनी
और तेज़ आवाज़ के साथ
तमाम शहर में ख़ौफ़ फैलाते
सड़कों पे अचानक मुड़ते
इमारतों और घरों के दरमियान से गुज़र के
दिलों में दाख़िल होके
ज़िंदगी को शिकस्त देते हुए
लोग नींद से चौंक उठते हैं
उनकी खुलती हुई आँखों से
मोहब्बत और ज़िंदा रहने की ख़्वाहिश छीनते हुए
वो हमें कहीं और कभी भी अपनी लपेट में ले सकती हैं
हमारी आँखों में से देख सकती हैं
और अगर कोई बहादुर हो
तो वो मौत की आँखों में आँखें डालकर
देख सकता है सब कुछ
और हो सकता है वो न देख सके
कुछ भी
मौत की आँखें
उससे ज़ियादा गहरी, बड़ी और बहादुर होती हैं
ख़्वाब में एक नज़्म
ख़्वाब में एक नज़्म ख़ुद को देखती है
और ख़्वाब से बाहर आ जाती है
सफ़ेद काग़ज़ पे लफ़्ज़ फैल जाते हैं
और एक नज़्म अपने आपसे बिछड़ जाती है
शायद ख़्वाब में देखी हुई नज़्म
उसकी जगह ले लेती है
हवा में उड़ता हुआ काग़ज़ नज़्म है
या वो ख़्वाब जिसमें नज़्म ख़ुद को देखती है
और नहीं पहचानती
वो ख़ुद को देखती है
और ख़ुशी या दहशत से मर जाती है
या ज़िंदा हो जाती है
किसी और नज़्म के ख़्वाब में
जंगली लड़की
पत्थरों से बने हुए मकान में
वो कभी अकेली नहीं रही
जानवरों की आवाज़ें
और तितलियाँ उस इलाक़े में बहुत हैं
वो दरिया का ज़िक्र हमेशा पहाड़ों से शुरू करती है
और समुंदर के बारे मे कुछ नहीं जानती
और मेरे बारे में
पुल के पार रहने वाले लोग उसके लिए अजनबी हैं
और पहाड़ों के दूसरी तरफ़ कुछ नहीं
चट्टानों की दराड़ें फूलों वाली घास से भरी हुई हैं
और जंगली लड़की
बारिश के बाद बीर-बहूटियाँ
जमा करने निकलती है
और नहीं जानती
ऐसे ही मौसम में
साँप नर्म तलवों की तलाश में निकलते हैं
देखना और याद करना
देख लेना
हर रात सोए हुए लोगों की बंद आँखों को
देखते, चमकते
और कभी ज़मीन पर बिखरते
सितारों की आख़िरी रौशनी में…
या उस रौशनी से बहुत दूर
पानी में खिले हुए फूलों
या भीगी हुई ज़मीन से निकलती हुई
गर्मी और ख़ुशबू में—
देख लेना
पुरानी किताबों के ढेर से अचानक मिलने वाली
नज़्मों की किताब के पहले सफ़्हे
या किसी छोटे स्टेशन पर रुकी
पसिंजर ट्रेन के आख़िरी डिब्बे में—
मुझे देख लेना एक बार अपनी आँखों से
या याद कर लेना
मुझसे बाहर
मुझसे बाहर एक जंगल है
जहाँ पत्तों के गिरने के लिए
कोई ख़ास धुन या मौसम मुकर्रर नहीं
जहाँ हवा चलने पर
दरख़्त एक-दूसरे से बातें नहीं कर सकते
जहाँ तेज़ आवाज़ वाले परिंदे
और गहरी रंगत के फूल बहुत कम हैं
मुझसे बाहर एक जंगल है
जहाँ हर शाम
मैं दरख़्तों के दरमियाँ
धूप को आख़िरी बार देखता हूँ
और बाहर निकल जाता हूँ
यादें
ख़ामोशी और फूलों को मत तोड़ो
वरना बहुत-सी बातों से भरी हुई ये रात
ज़िंदगी से ख़ाली हो जाएगी
हमारी सुबहें इस अँधेरे में छुपी हैं
इन्हें मत ढूँढ़ों
वो रात में बोलने वाले झींगुरों की तरह होती हैं
जो ख़ामोश हो जाने पर नहीं मिलते
मैंने अपने हीरे
ज़मीन के जिस हिस्से में छुपाए थे
वहाँ कोई बादल भी नहीं था
और मुझे याद आता है
उन दिनों मेरी हर चीज़ बर्फ़ से बनी होती थी
मोहब्बत करने वालों की याद में
ये नज़्म उन मोहब्बत करने वालों की याद में है
जिनकी याद में शहर के वस्त में
कोई फ़व्वारा नहीं लगाया जाएगा
और जिनके नाम की सड़क कहीं नहीं होगी
और जिनके लिए कोई अपना सिक्का पानी में नहीं फेंकेगा
ये नज़्म उन मोहब्बत करने वालों की याद में है
जिनकी याद में कोई अपने पालतू जानवर को
उनके नाम से नहीं पुकारेगा
कोई यादगारी टिकट जारी नहीं किया जाएगा
कोई उन्हें किसी जंग या हादसे में नहीं मारेगा
जिनके लिए कोई अपने कॉलर
या किसी क़ब्र पर फूल नहीं सजाएगा
और जिनकी याद में
कोई नज़्म नहीं लिखी जाएगी
नीम तारीक मोहब्बत
नीम तारीक मोहब्बत की दिलावेज़ी में
जगमगाती है तिरी याद की मौहूम किरन
चमक उठता है तिरे दर्द में डूबा हुआ चाँद
तुझको छूने की तमन्ना में गुज़रते बादल
मेरे हाथों की लकीरों में ठहर जाते हैं
किसी पुरशोर समुंदर का तलातुम लेकर
चाँदनी आके दिल-ओ-जाँ पे बिखर जाती है
नहीं मालूम कि वो फूल कहाँ खिलते हैं
जिनकी ख़ुश्बू मिरी आँखों में उतर जाती है
नीम तारीक मोहब्बत की दिलावेज़ी में
लोग कहते हैं कि इक उम्र गुज़र जाती है
नज़्म
तुमने किताब खोल के देखी नहीं अभी
इसमें तुम्हारे बारे में इक और नज़्म है
इस नज़्म में सफ़ेद गुलाबों का ज़िक्र है
आँखों में क़ैद रेशमी ख़्वाबों का ज़िक्र है
ऐ दिल! हर एक बार ये ख़्वाबों की बात क्यों
तकिये के पास बंद किताबों की बात क्यों
हर रात आसमाँ पे सितारों से बात कर
दरिया को तू न छेड़, किनारों से बात कर
करता है कौन रोज़ सितारों से गुफ़्तगू
होगी नहीं ख़िज़ाँ में बहारों से गुफ़्तगू
कुछ देर उसकी याद में ख़ामोश रह के देख
जिसने किताब खोल के देखी नहीं अभी
नक़्ल
मैं उसे नक़्ल करना चाहता हूँ
उन अल्फ़ाज़ के साथ
जो आसमानी दुआओं के लिए मख़्सूस कर दिए गए हैं
या उस ज़बान में सितारों
और बादलों के इल्म तक महदूद है
अगर ऐसा न हो सका तो फिर
मैं उसे एक ख़्वाब में
एक ऐसे गीत में
एक ऐसी कहानी में नक़्ल करना चाहता हूँ
जिसे दोहराया न जा सके
अगर ऐसा भी न हो सका तो मैं उसे
एक महराबी दरवाज़े, सुर्ख़ ईंटों की
दीवार या पत्थर के गुलदान से आरास्ता
खिड़की में नक़्ल करना चाहता हूँ
जिसे कोई तलाश न कर सके
मैं उसे जुग़राफ़िये के
एक कुंद ज़ेहन तालिब-ए-इल्म की तरह
सज़ा के तौर पर
ख़त्त-ए-इस्तिवा के दोनों जानिब
ख़त्त-ए-सर्तान और ख़त्त-ए-जद्दी के दरमियान
हर दर्जे पर नक़्ल करते हुए
पकड़ा जाना चाहता हूँ
याद
एक जंगल है
उदासी जहाँ ढूँढ़ती
बाहर निकलने का कोई रास्ता
रास्ता मिल जाने की ख़ुशी है याद
और न मिलने का आँसू
रुके हुए आँसुओं का ख़ज़ाना है याद
या तुम्हारे बग़ैर गुज़रते हुए
लम्हों का ढेर
याद एक ढेर है
सूखे हुए पत्तों का
बर्फ़ का या रेत का
मैं नहीं जानता
एक बच्चा मुझे बताता है
और अपने पिस्तौल में पानी भर के
ढेर पर डालता रहता है
शाइर
अगर मुझे अकेला नहीं देख सकते
तो रहने दो इसी तरह उदास
तो मत कहो
कि हमारे कमरे में रक्खी हुई
सबसे आख़िरी कुर्सी पर बैठ जाओ
या हमारे जूतों के पास
खड़े होकर मुस्कुराते रहो
या पुराना फ़र्नीचर चमकाने वाली पॉलिश के लिए
नई नज़्म लिख दो
मैं वादा करता हूँ
कि किसी बादल, किसी फूल
किसी हवा, किसी सितारे
या फिर किसी ख़ामोशी में
जहाँ भी जगह मिलेगी
बैठ जाऊँगा
या इस कमरे से बाहर जाकर
बारिश में खड़ा रहूँगा
अपनी तमाम मोहब्बत को
अपनी तमाम मोहब्बत को
किसी सेल्फ़ पोर्ट्रेट में
काले रंग की जगह इस्तिमाल करना चाहिए
या किसी भीगी हुई सिगरेट से
तेज़ ख़ुशबूदार तंबाकू की तरह
निकाल लेना चाहिए
अपनी तमाम मोहब्बत को
पानी के गिलास में भरकर
मेज़ पर रख देना चाहिए
या एक छोटे से कैप्सूल में बंद करके
समुंदर में डाल देना चाहिए
या फिर बोतल में रक्खी हुई
एक रंग-बिरंगी मछली
और अपनी तमाम मोहब्बत को
मोहब्बत से दीवार पर मार देना चाहिए
इंडिया
अब मेरी मेज़ पर
तीन छोटे-छोटे प्याले हैं
एक सफ़ेद रंग का है
दूसरे पर नीले रंग के फूल बने हैं
और तीसरा कोरी मिट्टी से बना है
मैं पहले प्याले में
पानी रक्खूँगा
दूसरे में रंग
और तीसरे में फूलों की पत्तियाँ
एक बड़े प्याले में—
फूलों की पत्तियाँ, रंग और पानी रख दूँगा
और एक सफ़ेद काग़ज़ पर
अपने ख़्वाबों और मोहब्बत का
एक हल्का-सा ख़ाका बनाऊँगा
और बाहर धूप में फैला दूँगा
अगर तुम मोहब्बत हो
अगर तुम हो
बारिश का एक क़तरा
या कोई आँसू
गिरो
गिरो
मेरे दिल पर
ये नमक का बना हुआ है
और मेरे होंठ
बने हुए हैं मोम से
अगर तुम धूप हो
अगर तुम याद हो
तितली का टूटा हुआ पर
या मेरी जली हुई बिल्ली
रख दो मेरी सीढ़ियों पर
ये बनी हुई हैं ख़्वाब से
और मैं बना हुआ हूँ तुमसे
अगर तुम मोहब्बत हो
ज़ीशान साहिल [1961-2008] उर्दू के उन अहम शाइरों में गिने जाते हैं। उन्होंने नस्री नज़्मों के ज़रिये अपनी शाइरी की और सिर्फ़ शोहरत ही नहीं हासिल की, बल्कि नस्री नज़्म को एक अहम सिन्फ़ बना दिया। उन्होंने अपने अहद की सियासी और समाजी सूरत-ए-हाल का बहुत गहराई से नज़्म के हवाले से बयान किया है। उनकी यहाँ प्रस्तुत नज़्में उर्दू से हिंदी में लिप्यंतरित करने के लिए उनके कुल्लियात-ए-नज़्म ‘सारी नज़्में’ से ली गई हैं, जिसे अजमल कमाल ने साल 2011 में प्रकाशित किया। मुमताज़ इक़बाल से परिचय के लिए यहाँ देखिए : मुमताज़ इक़बाल
प्रस्तुत नज़्में पढ़ते हुए मुश्किल लग रहे शब्दों के अर्थ जानने के लिए यहाँ देखिए : शब्दकोश
मुझे ये एकदम उम्दा नज्मे लगी I अंदरूनी रोशनी, अंदाजेबयां की
हया,बुनावट…शाइर सबसे बढिया एवं Quotable