संदेश

मैं आज अत्यंत सम्मानित महसूस कर रहा हूँ कि ‘सदानीरा’ के इस अंक में उत्कृष्ट पोलिश कवियों की कविताओं के अनुवाद प्रस्तुत हो रहे हैं। इस अंक का प्रकाशन एक ऐसे समय में हो रहा है, जब भारत अपनी आज़ादी का ‘अमृत महोत्सव’ मना रहा है। यह हमारे लिए दोहरी ख़ुशी की बात है।

आज से 75 साल पहले औपनिवेशिक चंगुल से निकलकर भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में दुनिया के पटल पर सामने आया। अंतरराष्ट्रीय संबंधों के बहुत सारे सकारात्मक मूल्यों और वैश्विक शांति को आगे कर, यह देश दुनिया के समक्ष एक लोकतांत्रिक देश के रूप में सामने आया।

हम पोलिश लोगों को बहुत अच्छी तरह मालूम है कि आज़ादी खोने का क्या मतलब होता है, और हम यह भी जानते हैं कि उसको फिर से पाने का भी कितना महत्त्व है। पोलिश नागरिक का अपरिहार्य गुण आज़ादी है।

यह क्षण हमारे लिए बहुत ख़ास इसलिए भी है कि भारतीय संस्कृति के सबसे बड़े पोलिश विशेषज्ञ, प्रोफ़ेसर मारिया क्षिष्तोफ़ बिरस्की को अभी अद्वितीय भारतीय सम्मान पद्मश्री मिला है। प्रोफ़ेसर बिरस्की ताज़िंदगी प्राचीन भारतीय पाठों/पांडुलिपियों पर रिसर्च करते रहे और उन्होंने बहुत सारा लेखन यथा किताबें और वैज्ञानिक लेखन आदि किया। वह 1993 से 1996 तक भारत में पोलैंड के राजदूत भी रहे। प्रोफ़ेसर बिरस्की को पद्मश्री देना न सिर्फ़ भारत-विद्या के एक उत्कृष्ट विद्वान को पुरस्कृत करना है, बल्कि पोलिश-भारतीय संबंधों के लिए भी एक बड़ी घटना है।

भारतीय संस्कृति पर पोलिश शोध 19वीं शताब्दी में शुरू हुआ और तबसे यह निरंतर जारी है। बहुत सारे पोलिश विश्वविद्यालय में इंडोलॉजी के विभाग हैं। इधर ये विभाग भारतीय-संपर्क के कारण और भी विकसित हो रहे हैं।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, भारत के जामनगर, गुजरात में और कोल्हापुर, महाराष्ट्र के शिविरों में लगभग 6,000 पोलिश शरणार्थियों को भारत ने शरण दी थी।

पोलैंड और भारत दोनों स्वभाविक सहयोगी हैं, और साथ ही हमारी संस्कृतियों में अविश्वसनीय समानताएँ हैं।

फ़रवरी 2022 में यूक्रेन पर हुए रूसी आक्रमण के बाद पोलैंड ने भी वहाँ फँसे लगभग छह हज़ार भारतीय छात्रों को निकालने में मदद की। यह भी हमारी दोस्ती की एक मिसाल है।

‘सदानीरा’ के इस अंक में हम उत्कृष्ट पोलिश साहित्यिकों को प्रस्तुत कर रहे हैं, पुनर्जागरण काल के कवि यान कोहनोस्कि और 19वीं शताब्दी के राष्ट्रीय कवि : आदम मिस्किएविच, यूलियुष सुओवत्स्कि और सिप्रियन कामिल नोरविद इस अंक में शामिल हैं। हम अंतर्युद्ध काल के कवियों को भी प्रस्तुत कर रहे हैं, ख़ास तौर पर स्तनिसुअव वितकियेविच जिन्होंने ‘शरद ऋतु को अलविदा’ शीर्षक अपने उपन्यास में भारत के बारे में लिखा। द्वितीय विश्व युद्ध के कवियों को और उन आधुनिक कवियों के भाषण, जिन्होंने नोबल पुरस्कार पाया, भी इस अंक में हैं।

प्रिय पाठको, पोलिश साहित्य के सागर में विचरण करने के लिए ख़ुद को स्वतंत्र महसूस करें!

‘सदानीरा’ का यह अंक दिखाता है कि पोलैंड हम सबका और साहित्य का सदा का साथी है।

— आदम बुराकोस्कि,
महामहिम राजदूत, पोलिश दूतावास, नई दिल्ली, भारत


यह संदेश ‘सदानीरा’ के पोलिश कविता अंक में पूर्व-प्रकाशित। इस प्रस्तुति की फ़ीचर्ड इमेज : Stanisław Wyspiański (1869-1907)

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