चिट्ठियाँ ::
पॉल सेलान
अनुवाद और प्रस्तुति : आदित्य शुक्ल
कविता का जन्म अंधकार में होता है—एक मौलिक व्यक्ति-विकास की तरह—इसका जन्म भाषा की इकाई की तरह होता है, जब तक कि भाषा अपने आपमें एक विश्व का प्रतिनिधित्व करती रहे, विश्व-ऊर्जा से परिपूर्ण रहे।
— पॉल सेलान
बीसवीं सदी के जर्मन भाषी कवि पॉल सेलान (23 नवंबर 1920–20 अप्रैल 1970) न सिर्फ़ अपनी नवीन और गूढ़ कविताओं के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि एक होलोकॉस्ट सर्वाइवर के रूप में ड्रेफ़स अफ़ेयर1एक राजनैतिक स्कैंडल जिसने तीसरे फ्रेंच रिपब्लिक को 1884 से 1906 तक विभक्त रखा। इस अफ़ेयर को आधुनिक और वैश्विक अन्याय के प्रतीक के रूप में देखा जाता है और यह आज भी न्याय के दुरुपयोग और यहूदियों के प्रति नफ़रत का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। से प्रताड़ित यहूदी और उसके ख़िलाफ़ अथक संघर्ष के लिए भी वह उल्लेखनीय हैं। बावजूद इन सभी संघर्षों के पॉल ने अपने साहित्य को होलोकॉस्ट पर केंद्रित न करके कविताई की नई भाषा-शैली गढ़ी और किसी भी सार्वजनिक मंच पर होलोकॉस्ट से संबंधित अनुभवों पर बोलने से बचते रहे। उन्हें जर्मन भाषा से प्रेम था, लेकिन जर्मन भाषा उनके शोषकों की भाषा बन गई। उन पर जर्मनी को यहूदी सेना के रहस्य बेचने के झूठे आरोप लगाए गए और सज़ा दी गई, यहाँ तक कि तब भी जब फ्रेंच इंटेलिजेंस एजेंसी को असली अभियुक्त के बारे में पता था। पॉल ने कई भाषाओं में साहित्य-सृजन किया। यहाँ प्रस्तुत पत्र हिंदी अनुवाद के लिए पियरे ज़ोरिस द्वारा संपादित और फ्रेंच से अँग्रेज़ी में अनूदित पुस्तक से चुने गए हैं।
ये पत्र उनकी पत्नी ज़िज़ेल सेलान-लेसट्रांज (फ्रेंच ग्राफिक आर्टिस्ट), दार्शनिक-उपन्यासकार ज्याँ पॉल सार्त्र और फ्रेंच कवि रने शार को संबोधित हैं। पॉल ने ज़िज़ेल को अनेकों पत्र लिखे जो फ्रांत्स काफ्का के उनकी प्रेमिकाओं—मिलेना और फेलिस—को लिखे पत्रों से प्रभावित थे। इन पत्रों के साथ प्रस्तुत ज़िज़ेल के रेखांकन उनकी ‘इचिंग’ नाम की शृंखला से लिए गए हैं जो पियरे ज़ोरिस द्वारा संपादित पुस्तक का भी हिस्सा हैं। पॉल सेलान ने 20 अप्रैल 1970 को पेरिस में सायन नदी में कूदकर आत्महत्या कर ली।
इन पत्रों के अनुवाद के सिलसिले में पॉल सेलान के विषय में हिंदी कवयित्री-अनुवादक रीनू तलवार ने महत्वपूर्ण जानकारियाँ देकर बहुत सहयोग किया। आभारी हूँ।
[ आदित्य शुक्ल ]
पहला पत्र
ज़िज़ेल सेलान-लेसट्रांज को
पेरिस, सोमवार [7 जनवरी 1952] दस बजे अपराह्न
माएया,
प्रिये, मैं तुम्हें यह बताने के क़ाबिल होना चाहता हूँ—मेरी कितनी हार्दिक इच्छा है कि हमारे संबंध अक्षुण्ण रहें, हम सदैव ही साथ रहें।
देखो, तुम्हारे पास आते समय मैं अपने पीछे एक दुनिया छोड़ता हुआ महसूस करता हूँ, ऐसा लगता है मानो मेरे पीछे दरवाज़े बंद हो रहे हों, दरवाज़ों पर दरवाज़े, क्योंकि बहुत सारे दरवाज़े हैं—उस दुनिया के दरवाज़े ग़लतफ़हमियों, झूठी सफ़ाई और हकलाहटों से बने। संभव है आगे मुझे और दरवाज़े मिलें, संभव है मैंने अभी वह सारा भूगोल नहीं पार किया जिस पर भटकाऊ प्रतीकों के जाल फैले हुए हैं—लेकिन मैं आ रहा हूँ, मेरा यक़ीन करो, मैं निकट आ रहा हूँ, मैं इस लय को गति पकड़ते महसूस कर पा रहा हूँ, भ्रम की ज्वाला एक-एक करके नष्ट हो रही है, झूठ बोलने वाले मुँह अपनी ही लार से बंद पड़ रहे हैं—अब और कोई शब्द नहीं, अब और कोई शोर नहीं, अब मेरी यात्रा में किसी तरह की बाधा नहीं।
अगले ही क्षण मैं तुम्हारे बग़ल में होऊँगा, जो क्षण नए समय का उद्घाटन करेगा।
पॉल
दूसरा पत्र
ज़िज़ेल सेलान-लेसट्रांज को
पेरिस, सोमवार [28 जनवरी 1952] पाँच बजे मध्याह्न
माएया,
मेरी प्रिये, जैसा कि मैंने वादा किया था, तुम्हें लिख रहा हूँ—आख़िर तुम्हें क्यों न लिखूँ मैं—मैं तुम्हें यह बताने को लिख रहा हूँ कि तुम हर क्षण मेरे पास उपस्थित हो, मेरे निकट, तुम उस हर जगह मेरे साथ जाती हो जहाँ मैं जाता हूँ, तुम ही मेरा विश्व हो, तुम अकेली, और तुमसे ही इस विश्व का आकार बढ़ गया है, शुक्रिया तुम्हें, तुम्हारी ही वजह से मिला है इस विश्व को नया आयाम, नए निर्देशांक, जो मैं इसमें ख़ुद कभी नहीं जोड़ सकता था। अब मैं उस कठोरचित्त अकेलेपन से उबर चुका हूँ जो मेरे सम्मुख एक जड़ता पेश करता था, जो मुझे घृणा के दलदल में डाल देता था, क्योंकि तब मैं न्याय की चाह रखता था और किसी को बख़्शना नहीं चाहता था! लेकिन सब कुछ बदल रहा है, सब कुछ बदल रहा है, तुम्हारी दृष्टि के सम्मुख—
प्रिये, थोड़ी देर में मैं तुम्हें फ़ोन करूँगा, सात बजे, जब मैं क्लास से बाहर निकलूँगा, लेकिन तुम्हें फ़ोन करने की प्रतीक्षा करने के दौरान मैं तुम्हारे बारे में सोचना नहीं बंद करूँगा। मुझे हमेशा फ़िक्र लगी रहती है, लेकिन कल से कम, और परसों की तुलना में और भी कम, पर मैं हमेशा फ़िक्र करता रहता हूँ, इस तरह मैंने पहले किसी की फ़िक्र नहीं की थी। लेकिन तुम तो यह सब जानती ही हो, तुम्हें यह बताने की भला क्या आवश्यकता है।
मैंने अब तक जिसे भी प्यार किया है, सिर्फ़ इसलिए किया है कि मैं तुम्हें प्यार करने के योग्य हो सकूँ।
पॉल
तीसरा पत्र
ज्याँ पॉल सार्त्र को
गल अफ़ेयर के संदर्भ में फ्रेंच दार्शनिक ज्याँ पॉल सार्त्र को लिखे गए अप्रेषित ख़त (जिन पर हाल ही में उनके घर रुए बोनापार्ट में एक जानलेवा हमला हुआ था) का यह अनुवाद उनकी पांडुलिपि पर आधारित है और अशुद्धियाँ कोष्ठक में दी गई हैं।
7 जनवरी 1962 के बाद
प्रिय ज्याँ पॉल सार्त्र,
मैं इस अवसर पर आपसे यह अपील करना चाहता हूँ (जैसे और भी बहुत से लोग कर रहे हैं) (इस समय) और लिखते समय मैं आपकी वर्तमान स्थिति को नज़रअंदाज़ नहीं कर रहा।
मैं लिखता हूँ—मैं जर्मन में कविता लिखता हूँ, और मैं एक यहूदी हूँ।
पिछले कुछ वर्षों से, विशेषकर पिछले वर्ष से, मैं एक आंदोलन का अपयश की हद तक शिकार रहा हूँ और उनके उद्देश्य उन सभी हदों को पार करते हैं जिन्हें हम दृष्टि में साहित्यिक रुचि का मामला समझ लें। आपको बिल्कुल आश्चर्य नहीं होगा यदि मैं कहूँ कि यह पूरी तरह से ड्रेफ़स अफ़ेयर है—सुई जेनेरिस2ग्रीक कहावत, अपने आप में अकेला, अनोखा, दुर्लभ।—क्योंकि इनके सभी लक्षण जर्मनी का ही प्रतिबिंब हैं, बस रास्ते ‘नए’ हैं—जिन रास्तों से नाज़ी लोग परिचित हैं, लेकिन मौलिकता के संघर्ष में, इस मामले में लोग थोड़ा ‘वाम’ रुख़ अपनाए हुए हैं—राष्ट्रवादी-बोल्शेविक प्रवृत्तियों वाले लोग और जैसा कि हमेशा से होता आया है, उनके साथ पर्याप्त मात्रा में यहूदी लोग भी हैं। (और ये सारी चीज़ें अंततः जर्मनी की सीमाओं से काफ़ी दूर हैं।)
(और उन्होंने हमारी दोस्ती तोड़ने की भरपूर कोशिश की है, उन्हें ताक़तवर लोगों का सहयोग रहा है।)
मुझे अच्छी तरह पता है कि आपके लिए एक अजनबी की लिखी हुई बातों पर यक़ीन करना कठिन है। मुझे आपके पास व्यक्तिगत रूप से आने का अवसर दीजिए, ताकि मैं आपको इस संबंध में मेरे पास उपलब्ध दस्तावेज़ दिखा सकूँ। (मेरा आपसे निवेदन है कि आप मेरी इस बात पर यक़ीन करें कि ये दस्तावेज़ काफ़ी दुर्लभ हैं।)
मैं इस ख़त के साथ अपना लिखा हुआ कुछ संलग्न करने की ख़ुद को छूट दे रहा हूँ। मुझे आपको अपना लिखा हुआ सब कुछ समर्पित करने में प्रसन्नता होगी।
मैं आपकी न्याय-दृष्टि और सत्यनिष्ठा के सम्मुख याचना करता हूँ।
(1948 में मैं पेरिस आया।)
संबंधित तथ्य मुझे आपसे यह कहने को बाध्य कर रहे हैं कि आप इस ख़त का प्रयोग विवेकपूर्ण ढंग से करिएगा। मैं आपसे यह भी निवेदन करता हूँ कि आप मुझे अपना एक साक्षात्कार लेने का अवसर दें।
(बिना हस्ताक्षर।)
चौथा पत्र
रने शार को
गल अफ़ेयर के संदर्भ में रने शार को लिखे गए अप्रेषित ख़त का ड्राफ्ट।
78 रुए द लॉन्गचैम्प, पेरिस, 22 मार्च 1962
प्रिय रने शार,
सच्चाई से ओत-प्रोत आपके ख़त के लिए आपको साधुवाद। मुझसे हाथ मिलाने के लिए आपका धन्यवाद, मैं भी आपसे हाथ मिलाता हूँ।
मेरे साथ जो कुछ भी घटित हो रहा है, इस विषय को पुनः उठाने के लिए क्षमा करें, मेरी समझ से अपने आपमें अनोखा है। कविता, जैसा कि आप जानते ही हैं, बिना कवि के संभव नहीं होती, बिना कवि के, बिना कवि के—यह संभव नहीं है, और ऐसा जान पड़ता है कि ये दक्षिणपंथी और ‘वामपंथी’ गुंडे मुझे नष्ट कर देने के लिए एक साथ आ गए हैं। मैं अब उधर भी प्रकाशन नहीं करवा सकता, उन्हें पता है कि वे मुझे किस तरह से विलग कर सकते हैं। आपको उन्होंने इस देश से निर्वासित करवा दिया, लेकिन आपकी असली भूमि यही है। जहाँ तक मेरा सवाल है, मैं तो पहले ही कई मोर्चों पर बँटा हुआ हूँ, ऊपर से वे मेरे ऊपर पत्थरबाज़ी करके आनंद ले रहे हैं। मेरे अलग-अलग हिस्सों पर प्रहार कर रहे हैं। आपको बिल्कुल आश्चर्य नहीं होगा कि इस काम में सबसे आगे ‘छद्म-कवि’ हैं। रने शार, इनमें हमारे कई उभयनिष्ठ मित्र भी शामिल हैं। रने शार उनसे सावधान रहिए जो आपकी नक़ल करते हैं। (मैं बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ, जो कुछ भी कह रहा हूँ।) अपनी मूर्खता में वे आपकी छवि का इस्तेमाल अपनी छवि बनाने में कर रहे हैं : वे लोग आपका प्रतिबिंब नहीं हैं, वे आपको मलिन कर रहे हैं। और उन्होंने हमारी मित्रता की पड़ताल करने में काफ़ी मेहनत की है… उन्हें बहुत से लोगों की मदद हासिल है…
देखिए, मैंने हमेशा आपको समझने की कोशिश की है, हमेशा प्रत्युत्तर में हाज़िर रहा हूँ, आपके काम को ऐसे अपनाया है जैसे कोई किसी मनुष्य को अपनाता है, और वास्तव में यह मेरे द्वारा आपका हाथ थामने-सा ही है, उस हर जगह जहाँ कोई भी अवसर उत्पन्न हुआ। आपके लिखे हुए में वे हिस्से जो मेरे सामने नहीं खुल पा रहे, मैंने सम्मान के साथ प्रत्युत्तर दिया और प्रतीक्षा की, आप सब कुछ समझ लेने का ढोंग नहीं कर सकते—यह उस अज्ञात का अपमान होगा जो कवि का हिस्सा है, या जो कवि का हिस्सा बनता है; यह, यह भूलना होगा कि कविता ऐसी चीज़ है जिसमें आप साँस लेते हैं, यह कि कविता आपमें साँस लेती है। (लेकिन यह साँस, यह लय… आती कहाँ से है?) विचार—ख़ामोशी—और फिर भाषा इस साँस की रचना करते हैं, महत्वपूर्ण बात यह है कि इनसे ‘अंतरालों’ में भरपाई होती है, इन्हें भेद करना आता है, वे आपकी आलोचना नहीं करते, वे आपका चुनाव करते हैं : ये अपनी सहानुभूति बनाए रखते हैं और सहानुभूति से ही संचालित होते हैं।
मैं थोड़ा पीछे लौटने की आज्ञा चाहता हूँ : आपने बताया कि आप एक ऐसे ख़ालीपन की रचना करने में सक्षम हुए हैं जिसमें आपके शत्रु गिरकर ख़ुद-ब-ख़ुद मर जाते हैं। मुझे आपको इतना सशक्त और दृढ़ देखकर प्रसन्नता होती है। जहाँ तक मेरे ख़ालीपन की बात है, जो ख़ालीपन वे लोग मेरे जीवन में बनाने में सफ़ल हुए हैं, मैं इसे ऐसे देखता हूँ जैसे एक पूरी निर्माणाधीन क़ौम जिसको मैं कोई नाम नहीं दे सकता। और ये जीव संख्या में बहुत अधिक हैं और दिन-ब-दिन बढ़ते ही जा रहे हैं, क्योंकि झूठ को बढ़ने की कला आती है—‘निम्फेट्स’ का शुक्रिया, और अगर नहीं तो, जनसंख्या विस्फोट का शुक्रिया।
(पिछले कुछ महीनों में इन सबने मेरे ‘मनोवैज्ञानिक क्रियाकलापों’ में बहुत वृद्धि कर दी है जो मेरे मानस का संहार कर देने को आतुर हैं।)
मुझे डर है कि मनुष्य के निर्वासन का समय आ गया है…
(मैं जानता हूँ कुछ लोग सेंट-जॉन पर्से और उनके ‘द्विभाषीय’ कवि को उद्धृत करते हुए आप पर आक्रमण करते हैं : यहाँ भी उन्हें लगता है कि जैसे वे दुष्ट अपनी नक़ली बहस के लिए हलफ़नामा हासिल कर लेंगे…)
आप जिस बर्फ़ की पर्त की बात मुझसे कर रहे थे, मैं भी उससे परिचित हूँ! लंबे समय तक मैं भी उसका शिकार रहा, लेकिन मैं उसे एक टेबलक्लॉथ में तब्दील कर देता हूँ जिसे मेरी पत्नी हमारी मेज़ पर बिछा देती है—एक सुखद गोलाकार मेज़ पर—जिस पर हम कीचड़ के कई रूपों की मेज़बानी करते हैं।
हमें अब भी वह दिन याद है जब आप पहली बार आए थे, रने शार, आपकी किताबों में लिखे हुए आपके शब्द हमें याद हैं। उन्हें सुनकर पददलित घास भी उठ खड़ी होती है। इन शब्दों में दूसरे ओलंपियन का दिल है और उसकी सलामी भी है।
पॉल सेलान
पाँचवाँ पत्र
ज़िज़ेल सेलान-लेसट्रांज को
पेरिस, बुधवार, 14 जनवरी 1970
मेरी अत्यंत प्रिय ज़िज़ेल,
मैं उस घड़ी को अपनी आँखों के सामने घटित होते देख सकता हूँ। तुम्हें मेरे उद्देश्य पता हैं, मेरे अस्तित्व का लक्ष्य पता है तुम्हें, तुम मेरे ‘होने’ का कारण जानती हो।
बहुत ‘किलोड्रामा’ हुआ है। जो मेरे सम्मुख मेरे पुत्र और कविता के बीच चुनाव करने के विकल्प रखते हैं—मेरा चुनाव है : हमारा पुत्र3संपादकीय नोट : जैसा कि आंद्रे दू बौचेट ने बताया है कि पॉल ने ज़िज़ेल से एक मौखिक संवाद में, लगभग सन्निपात की अवस्था में कहा था कि कविता उनसे ‘अब्राहमी त्याग’ (हिब्रू बाइबिल की एक कथा के अनुसार ईश्वर अब्राहम से अपने पुत्र ईजाक को बलि देने के लिए कहता है) की माँग कर रही है। (एरिक सेलान और आंद्रे दू बौचेट के बीच बातचीत से)। फ़िलहाल उसकी ज़िम्मेदारी तुम पर है, उसकी मदद करो।
हमारे (एकाकीपन के) इस स्तर को बरक़रार रखो : यह तुम्हें पुष्ट करेगा।
मैंने किसी और स्त्री को उस तरह से प्रेम नहीं किया, जैसे तुम्हें किया है।
यह प्रेम ही है—एक अति प्रतियोगी भाव—जो मुझसे ये पंक्तियाँ लिखवा रहा है।
पॉल
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आदित्य शुक्ल (जन्म : 27 नवंबर 1991) हिंदी कवि-अनुवादक-गद्यकार हैं। वह गुरुग्राम (हरियाणा) में रहते हैं। उनसे shuklaaditya48@gmail.com पर बात की जा सकती है। ‘सदानीरा’ पर इससे पूर्व प्रकाशित उनके अनुवाद-कार्य के लिए यहाँ देखें :