एडवर्ड मुंच के कुछ उद्धरण ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद और प्रस्तुति : नीता पोरवाल
नॉर्वे के लॉटेन में जन्मे प्रसिद्ध चित्रकार एडवर्ड मुंच (1863–1944) अपनी आइकॉनिक कलाकृति ‘द स्क्रीम’ (द क्राई, 1893) के लिए विश्व भर में जाने जाते हैं। वह बतौर चित्रकार साठ से भी अधिक वर्षों तक सक्रिय रहे। उनका बचपन झंझावातों से भरा रहा। जन्म के कुछ वर्ष बाद ही, 1868 में उनकी माँ की तपेदिक से मृत्यु हो गई। बाद इसके उनकी देखभाल उनके पिता ने की जो स्वयं अवसाद के शिकार थे। एडवर्ड को मानसिक रूप से अपने बीमार पिता से डर, व्यग्रता, दुख, अवसाद और आशंकाएँ विरासत में मिलीं। क्रिस्टियानिया (आज के ओस्लो) में रॉयल स्कूल ऑफ़ आर्ट एंड डिज़ाइन में अध्ययन करते हुए, निहिलिस्ट हंस जोगर ने एडवर्ड से अपनी भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक स्थिति (‘आत्मा’) को चित्रित करने का आग्रह किया और आगे चलकर एडवर्ड ने इसमें महारत हासिल की। 2012 में न्यूयॉर्क में एडवर्ड मुंच की कृति ‘द स्क्रीम’ की नीलामी हुई जो 119 मिलियन डॉलर में बिकी और उसने दुनिया भर में एक नया रिकॉर्ड स्थापित किया। यहाँ प्रस्तुत हैं इंटरनेट पर अँग्रेज़ी में उपलब्ध उनके कुछ उद्धरणों का हिंदी अनुवाद :
रंग, कैनवस पर उतरने के बाद एक विलक्षण जीवन जीते हैं।
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मैंने तस्वीर में रंग भरे और रंगों में लय के साथ संगीत झंकृत होने लगा। हाँ, मैंने देखा था कि मैंने तस्वीर में रंग ही भरे थे।
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कुछ रंग अपने अंक में एक दूसरे को समेट लेते हैं, वहीं कुछ सिर्फ़ एक दूसरे से हमेशा बैर-भाव रखते हैं।
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मैं तस्वीर और अपने बीच एक तरह की दीवार बना लेता हूँ जिससे मैं उस दीवार के पीछे रहकर शांतचित्त होकर रंग भर सकूँ, नहीं तो वह तस्वीर कुछ भी बोलकर मुझे भ्रमित और विचलित कर देती है।
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मैं अब से पढ़ते हुए पुरुषों और बुनाई करती हुई स्त्रियों की तस्वीरें नहीं बनाऊँगा। मैं उन जीवित साथियों की तस्वीरें बनाऊँगा जो ज़िंदगी को जीना जानते हैं और उसे महसूस करते हैं, जो तकलीफ़ें सहते हैं और प्रेम करते हैं।
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मेरी क्षीण होती काया से फूल उगेंगे और मैं उनमें ही एक फूल होऊँगा और यह शाश्वत सत्य है।
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मैंने जिसमें नोट्स बनाए हैं, वह कोई आम डायरी नहीं, बल्कि इसमें मेरे आध्यात्मिक अनुभवों के लंबे रिकॉर्ड्स और गद्य के रूप में कुछ कविताएँ हैं।
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प्रकृति सिर्फ़ वह नहीं जो आँखों को नज़र आती है… आत्मा की अंदरूनी तस्वीर में भी यह मौजूद होती है।
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चिंता और बीमारी के बग़ैर मैं बिना पतवार वाली कश्ती की तरह होता।
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मौत तारकोल-सी स्याह है, पर रंग रोशनी से भरे होते हैं। एक चित्रकार होने के नाते हरेक को रोशनी की किरणों को साथ लेकर काम करना चाहिए।
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बीमारी, दीवानगी और तबाही फ़रिश्तों की तरह मेरे पालने को घेरे रहते थे और जिन्होंने ज़िंदगी भर मेरा पीछा किया।
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माइकल एंजेलो और रेम्ब्राँ की तरह आम तौर पर मैं रंगों के मुक़ाबले रेखाओं को उठाने और मोड़ने में अधिक दिलचस्पी रखता हूँ।
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मैंने दुखों, जीवन के ख़तरों और मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में, सज़ा के बारे में… कम उम्र में ही जान लिया। इस सबकी उम्मीद गुनाहगार नर्क में करते हैं।
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जहाँ तक मुझे याद आता है कि मैं हमेशा गहरे अवसाद से पीड़ित रहा जो मेरी कलाकृतियों में भी झलकता है।
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मैं जीवन के बाद के जीवन की कल्पना नहीं कर पाता : जैसे ईसाई या अन्य धर्मों के लोग विश्वास रखते हैं और मानते हैं जैसे कि सगे-संबंधियों और दोस्तों के साथ हुई बातचीत जिसे मौत आकर बाधित कर देती है, और जो आगे भी जारी रहती है।
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वह सब कुछ जो आज मेरे पास है, डर और बीमारी के बग़ैर मैं उस सबमें निपुणता हासिल नहीं कर सकता था।
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मैं उसे चित्रित नहीं करता जिसे मैं देखता हूँ, मैं तो उसमें रंग भरता हूँ जिसे मैंने पहले कभी देखा था।
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जिस तरह लियोनार्डो दा विंसी ने इंसानी शारीरिक रचना विज्ञान का अध्ययन किया और मुर्दा शरीरों को क़रीब से समझा, उसी तरह मैं आत्माओं के मनोभावों को पढ़ने की कोशिश करता हूँ।
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वे कभी इस बात पर ग़ौर नहीं करेंगे कि ये कलाकृतियाँ मुश्किल घड़ियों और बहुत नाज़ुक पलों में बनाई गईं, कि ये कलाकृतियाँ कोरी आँखों से बिताई गईं रातों का नतीजा हैं, कि इन कलाकृतियों ने मुझसे मेरे ख़ून की क़ीमत वसूली है और मेरी शिराओं को कमज़ोर किया है… हाँ, वे कभी इस बात पर ग़ौर नहीं करेंगे।
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वह एक युद्ध है जो स्त्री और पुरुष के बीच हमेशा चलता रहता है, जिसे बहुत लोग प्रेम कहकर पुकारते हैं।
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नीता पोरवाल (जन्म : 1970) सुप्रसिद्ध और सम्मानित अनुवादक हैं। संसार की कुछ उल्लेखनीय कृतियों को हिंदी में लाने का श्रेय उन्हें प्राप्त है। वह अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) में रहती हैं। उनसे neeta.porwal4@gmail.com पर बात की जा सकती है। ‘सदानीरा’ पर समय-समय पर संसारप्रसिद्ध रचनाकारों के उद्धरण प्रकाशित होते रहे हैं, उनसे गुज़रने के लिए यहाँ देखें : उद्धरण