सुभाषितरत्नभाण्डागारम् ::
प्रस्तुति : गार्गी मिश्र

तस्वीर सौजन्य : रेयर बुक सोसाइटी की आर्काइव से

सुभाषितरत्नभाण्डागारम्

इस किताब के उल्लास का अनुभव करने के लिए एक लंबे और नितांत निजी अंधकार की आवश्यकता थी। हो न हो यह आपदाग्रस्त समय अपने साथ उस अंधकार को भी ले आया है जिसमें मैं अपने स्थगित उल्लास को पा सकी हूँ।

आप इस संसार के जितने शब्द, नाम, स्वप्न सोच सकते हैं; उन सभी पर इस ‘सुभाषितरत्नभाण्डागारम्’ में सुभाषित अंकित हैं। इन्हें पढ़ते हुए लगता है कोई कवि मेरे कानों के पास एक-एक पुष्प रख कहता है, “कोई स्वप्न कहो या कि कहो कोई शब्द?”

मैनें पहला शब्द कहा :

पार्वती

तपस्वी कां गतोअवस्थामिति स्मेराननाविव।
गिरिजायाः स्तनौ वन्दे भवभूतिसिताननौ।।

महादेव के शरीर के भस्म से जिसके आगे का भाग श्वेत हो गया है। ऐसे पार्वती के दोनों स्तन ‘यह तपस्वी अब कैसा कामी हो गया है’ यह सोचते हुए हँस रहे हैं। उन्हें मैं प्रणाम करती हूँ।

पार्वतीमोषधीमेकामपर्णा मृगयामहे।
शूलीहालाहलं पीत्वा यया मृत्युंजयोअभवत्।।

पर्वतराज की पुत्री पार्वती तो एक अपर्णा की औषधिरूप है। जिसका सेवन करने के कारण महादेव हलाहल विष का पान करने पर भी मृत्युंजय बने रहे। उस पार्वती की मैं इच्छा करती हूँ।

अंकनिलीनगजाननशंकाकुलबाहुलेयहृतवसनौ।
सस्तमितहरकरकलितौ हिमगिरित नयास्तनौ जयतः।।

पार्वती के दोनों स्तन विशाल होने के कारण कुंभस्थल जैसे लगते हैं। जिसके कारण कार्तिकेय को यह भ्रम होता है मानो उन्हें छोड़कर पार्वती गणपति को गोद में बिठाकर स्तनपान करा रही है। अतः उन्होंने पार्वती का वस्त्र खींच लिया। तब महादेव ने मंद हास्य करते हुए दोनों को खींचकर अपने हाथों में ले लिया। पार्वती के ऐसे विशाल स्तन विजय प्राप्त करें।

शिरसि धृतसुरापगे स्मरारावरूण मुखेन्दुरुचिर्गिरींद्रपुत्री।
अथ चरणउयगानते स्वकान्ते स्मितसरसा भवतोअस्तु भूतिहेतुः।।

महादेव ने मस्तक पर गंगा को धारण किया है यह देख कर पार्वती के मुख की कांति लाल बन गई है। परंतु जब महादेव को चरणों में गिरे हुए के कारण गंगा को झुका हुआ पार्वती ने देखा तब वे मंद हास्य करने लगीं। वह मंद हास्य तुम्हारा कल्याण करे।

पंचास्यपंचदशनेत्रपिधानदक्षा दक्षायणीमृदुकराः कृतिनः पुनन्तु।
द्वौ वल्लकीं कथमकेति च वादयन्तावष्टादशोअपि घटयन्स्तुतिमौनमुद्राम्।।

विहार करते समय पार्वती के पंद्रह हाथ महादेव के पंद्रह नेत्रों को ढांकने के काम में आते हैं। दो हाथ ‘कण कण’ करती वीणा को बजाने के काम में आते हैं। अठारहवाँ हाथ स्तुति करते समय मूक रहने की मुद्रा बनाने के काम आता है। इस प्रकार उपयोगी पार्वती के अठारह हाथ सबको पवित्र करें।

ज्याक्रिष्टिबद्धखटकामुखपाणिपृष्ठप्रेखंडन खांशु चय संवलितोअम्बिकायाः त्वां पातु। मन्जरितपल्लवकर्णपूरलोभभ्रमरविभ्रमभृतकटाक्षः।।

जब पार्वती ने धनुष की डोरी खींचने के लिए अपने हाथ को मोड़ा उस समय उनके हाथों ने नखों की किरणों में उनकी नेत्रों का कटाक्ष भी मिला हुआ था। वह कटाक्ष ऐसा लगता है मानों मंजरवाले ताज़े पत्तों से बने हुए कर्णफूल की सुगंधि के लोभ से उसके आस-पास गुंजायमान होते भ्रमर-समूह उनके आस-पास हों। जगदंबा का वह कटाक्ष तुम्हारा कल्याण करे।

मोहध्वान्तप्रसरविरतिर्विश्वमूर्तिं समन्ताद्।
आद्याशक्तिः स्फुरुतु मम सा दीपवद्येहेगेहे।।

जो सत्व, रज तथा तम इन तीन गुणों में स्थित हैं, अपनी अनंत शक्तियों से समस्त विश्व को जन्म देती हैं, फिर भी ‘कुँवारी’ के नाम से प्रसिद्ध हैं। जो सबको हास्य प्रदान करती हैं। जो मोहरूपी अंधकार के विस्तार का शमन करती हैं। जो समस्त जगत की सजीव मूर्ति हैं। वह आद्याशक्ति पार्वती मेरे शरीर में दीपक की भांति प्रकाशित हों।

रामाद्याचय मेदिनीं धनपतेर्बीजं बलाल्लाअंगलं
प्रेतेशाम्नहिषं त्वास्ति वृषभः फालं त्रिशूलं तव।
शक्ताहं तव चात्रदानकरणे स्कंदोअस्ति गोरक्षणे
शित्राहं हर भिक्षया कुरुकृषिं गौरिवचः पातु वः।।

भिक्षावृत्ति से तंग आकर पार्वती ने महादेव को बतलाया कि हे शिव! भगवान परशुराम के पास से खेती के लिए थोड़ी-सी ज़मीन माँग लो। कुबेर के पास से थोड़ा-सा बीज माँग लो। बलभद्र के पास से हल माँग लो। यमराज के पास से भैंसा माँग लो। आपके पास बैल तो है ही। जोतने का काम आपका त्रिशूल करेगा। दुपहर के समय मैं आपको भोजन पहुँचाने आऊँगी तथा कार्तिकेय आपके बैल की रक्षा करेगा। अतः भीख माँगना छोड़कर खेती आरंभ करें। इस प्रकार के पार्वती के वचन तुम्हारी रक्षा करें।

वक्त्रं शीतकरोअधरो धनरसः कामप्रदो विग्रहः
श्वासो गन्धवहः सरोस्हसुहृत्पाणिः स्मिताभा शुचिः।
वक्षः पीनपयोधराधिकरणं पृथ्वी नितम्बस्थली
तयष्टौ धूर्जटिमूर्तयः स्मरभयाद्दुर्गाश्रिताः पान्तु वः।।

महादेव की आठ प्रसिद्ध मूर्तियाँ कामदेव के भय के कारण मानो दुर्गा का आश्रय ले रही हों इस प्रकार दुर्गा (पार्वती) के अंगों का आश्रय लेती हैं। जैसे चंद्रमा ने मुख का आश्रय लिया। जल तथा प्रगाढ़ रस अधर बन गए। यजमान पार्वती का शरीररूप बनकर महादेवरूपी याचक की कामनापूर्ति करने वाले बने। पवन ने साँस का रूप धारण किया। कमल का मित्र सूर्य (कमल के समान) हाथ का रूप धारण किया। शुचिता (अग्नि तथा श्वेत रूप) स्मित की कांति बन गई। आकाश ऊँचे तथा विशाल स्तनों के स्थानरूपी वक्षस्थल को प्राप्त हुआ तथा पृथ्वी का भाव धरती जैसी विशालता का भाव नितंबस्थान को प्राप्त हुआ। इस प्रकार के पार्वती के आश्रय में स्थित महादेव की आठ मूर्तियाँ तुम्हारी रक्षा करें।

लग्नःकेलिकचग्रहश्लथजटालम्बेन निद्रान्तरे
मुद्रांगकः शितिकंधरेन्दुशकलेनान्तःकपोलस्थलम्।
पर्वत्या नखलक्ष्मशंकितसखीनर्मस्मितव्रीडया
प्रोन्मृष्टः करपल्लवेन कुटिलाताम्रच्छविः पातु वः।।

लीला करते हुए पार्वती ने महादेव के केश हाथों में ले लिए। जिसके कारण जटाएँ ढीली पड़ गईं और उसमें स्थित चंद्रमा नीचे गिर गया। चंद्रमा के सोई हुई पार्वती के गाल के पास आ जाने के कारण उसकी छाप उनके गालों पर पड़ गई। पार्वती की सखियों ने यह छाप देखी और उसे शिव के नख का छाप मानकर गूढ़ हास्य करने लगीं। इससे पार्वती लज्जित हो उठीं और वह अपने कर पल्लव से उस छाप को पोंछ डालना चाहती थीं। परंतु चंद्रमा की वह लाल और तिरछी छाप मिटती नहीं थी। चंद्रमा की वह छाप तुम्हारी रक्षा करे।

***

वह पिछले वर्ष की शीत ऋतु थी जब किसी साँझ मैं काशी की गलियों में विचरते हुए अपने अनुज अजय के संग गोपाल मंदिर को निहारते हुए चौखम्भा प्रकाशन पहुँची।

वर्षा हो रही थी।

हमने कई पुस्तकें लीं और बहुत-सी पुस्तकों को लेने के लिए अपने रुपए भी जोड़े। उन्हीं कई पुस्तकों में से मेरे पास आई, नारायण राम आचार्य द्वारा रचित और श्री राम प्रकाश झा द्वारा हिंदी में अनूदित ‘सुभाषितरत्नभाण्डागारम्’।

जब मैंने इस पुस्तक के पहले खंड की विषयानुक्रमणिका का दर्शन किया तब मैं उस उल्लास को प्राप्त हुई जिसका आरंभ में उल्लेख है।

क्षमा याचना :

संस्कृत को पढ़ने और समझने का मेरा यह प्रथम प्रयास है। कुछ सुभाषित भर चुने हैं। किसी शब्द में कोई त्रुटि हो गई हो तो मुझे अबोध जान कर क्षमा करें।

गार्गी मिश्र से परिचय के लिए यहाँ देखें : जैसे गिरती है अंतरिक्ष से कोई मन्नतदुःख और मनुष्य का शरीरमृणालिनी को

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