कविताएँ ::
तापस

तापस

मज़ार

बिल्कुल अभी
खिड़की से गुज़र गई आवाज़ें

मेरी बग़ल में बैठा आदमी गुजराती में
माँ की गाली दे रहा है
और मैं सुन रहा हूँ चुपचाप

आधिकारिक हिंदी में वह मुझसे पूछता है—
यह सब आप लिख तो नहीं रहे

मैं उससे कहता हूँ—
हाँ लिख रहा हूँ

उसके पास पैसा है
उसे और कमाना है

मैंने पूछा—
आप इस पैसे में कहाँ हैं?

वह उँगलियों से दिखाता है जगहें
उसके पास आधुनिकता का कॉपीराइट है
ऐसा भी उसने कहा
उसके पास कई शरीरों का है हिसाब

उसने कहा : मुसलमानों का क्या है
सब चित्त के भूगोल से बाहर हैं
और अपने जीवन में रेंग रहे हैं
वे अभ्यस्त हैं
और हम व्यस्त
मेरा मकान ऊँचा है
मैं रोज़ दुपहर को थूकता हूँ थूक
अपने ऊँचे मकान से
एक पुराने ढहते मज़ार पर

सुनना

मैं सुन चुका था बीथोवेन
मोत्ज़ार्ट भी सुनकर पूरा कर लिया था

भीमसेन जोशी और जसराज को भी
टकरा-टकरा कर सुनता रहा

मैं सुनता रहा भेड़-बकरी
आधी रात तक
उन दिनों ग़ज़लें भी ख़ूब गुनगुनाता रहा—
रंजिश ही सही
दिल ही दुखाने के लिए आ…

एक दिन ईश्वर ने सपने में छीन ली
अच्छा सुनने की शक्ति

फिर मैं सब कुछ घटिया ही सुनता रहा

नूर की क़िस्तें

एक

शराब पीने की जगह अकेलापन बयाँ करती हो
कितनी क्रूर हो गई हो तुम
तुम्हारे चश्मे में किसी तरह की भाप नहीं बनती
उड़ता है आसमान में धूल का क़िला
और महज़ पानी से ढह जाता है

दो

आप प्रेम के सौहार्द को
अपने भीतर उतारने की
बेज़ार कोशिश करते हैं
और झूठ बोलते हैं

किसी सीढ़ी से नहीं उतर रही तुम
सब समय की नाव का…

तीन

दीवार में खड़ी तुम
खिड़की से झाँकती हो
हँसना चाहती हो
बिस्तर पर चादरों में
तुम्हारी सिकुड़न ऐंठ रही

चार

तुम्हारी देह काँपती
थरथराती हैं तुम्हारी साँसें

पाँच

किसी की समझदारी
तुम्हारे दिमाग़ से नहीं टकराएगी
तुम बेहोश हो प्रेम में—
मेरी तरह

छह

ख़ाली जगह
अँधेरे में

हम दोनों की उँगलियाँ
एक दूसरे में उलझती हैं

सात

वीर्य के स्खलन में
तुम्हारा भीगना

पैरों के नीचे
ख़ून जमा होना

आठ

माँ से संबंध नहीं बनाना चाहता
माँ-माँ नहीं रह गई

नौ

जीभ से उतार दूँगा सीढ़ी
वहाँ तुम सिगरेट भी पी सकती हो

दस

मेरा चेहरा सूख रहा है
जैसे चिनार का पेड़

ग्यारह

मेरे पास घड़ी नहीं है
और न ही समय
मैं झाड़ू लगाना चाहता हूँ
दिलों पर…

बारह

कॉफ़ी कप के भीतर
तुम्हारी सिगरेट का धुआँ
जमा हो रहा है

तेरह

अकड़कर गले मिलने से
कुछ टूटता है

आवाज़ खनकती है
धैर्य छूटता है

चौदह

ख़ाली जगहें भरी जाएँगी
मैं तुम्हें लेकर भागूँगा
पहाड़ों और नदियों से
बार-बार गिरूँगा
ज़िंदा रहूँगा

पंद्रह

वहाँ इक आग होगी
और आधी रात में जुड़ता हुआ चाँद

सोलह

दोस्त लाइटर जलाता है
तुम्हारी याद दिलाता है
महक में बेताब मन घबराता है
सीधा खड़ा हुआ जाता है

सत्रह

शराब के नशे में
तुमको उतारना चाहता था

तुम्हारे मरकज़ पर
उँगली फेरना चाहता था

अटकी नींद में
भैरवी सुनना चाहता था

तुम्हें छोड़कर तुम्हारी तरफ़
भागना चाहता था

अठारह

आग की आख़िरी लपट बनूँ
तुम्हें गरमा दूँ
तुममें बहूँ
तुम्हें काटूँ
पानी की जगह

उन्नीस

मिलने और न मिलने की असमर्थता में
मैं अपना नाम भूल गया

गलियों में घूमते हुए तुम्हारी परछाई
मेरे साथ चल रही थी

लगता था न लगना तुम्हारा
भूख और प्यास में ख़ून बहा तुम्हारा

वे मस्जिद में मंदिर ढूँढ़ते हैं
मैं दिल में दरवाज़ा ढूँढ़ना चाहता हूँ

क्या कहना है
और क्या नहीं
इस पर रोज़ सोचूँगा

हत्या का आरोप भी क्या आरोप है :
मैंने और आगे जाने की विफलता को ही
अपना पैमाना बना लिया है

मेरे माथे का पसीना तो वही पोंछेगी
तुम इसे मेरी मिन्नत समझो या धमकी

बीस

अक्सर हम गड्ढे में गिर जाते हैं
प्रेम में इतने मदहोश कि
धूल से सन जाते हैं

बोलना

मैं उनकी हथेलियाँ देखता था
उनके खाने में झाँकता था

मैं उनकी सबसे ख़ूबसूरत बात पर
मुस्कुराता था

वे मुझसे मेरा नाम
पूछना चाहते थे

यह तब की बात है
जब मुझे बोलना नहीं आता था


तापस की कविताओं के ‘सदानीरा’ पर प्रकाशित होने का यह तीसरा अवसर है। इन काव्यांतरालों में वह संभावनाशील से उत्कर्षमय और उत्कर्षमय से विशिष्ट होते गए हैं। उनसे और परिचय के लिए यहाँ देखें : जीना और बुलेट पर प्रेमिका सुंदर को और सुंदर बनाने की क्रिया

1 Comment

  1. अंचित जून 11, 2022 at 4:48 पूर्वाह्न

    सुंदर कविताएँ

    Reply

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