आग़ा शाहिद अली की कविताएँ ::
अनुवाद : अमित तिवारी

agha shahid ali, some poems
आग़ा शाहिद अली

कमरा ख़ाली करते हुए

एक

विधाता की तरह कुशल
और बर्बर सैनिक जैसी आँखों वाले मेहतर
अपनी धूमकेतु सरीखी उँगलियों से
मेरी मुस्कान कमरे से साफ़ कर देते हैं
वे सब जान लेते हैं
दीवारों की बातूनी ज़ुबान से
दालचीनी के एक डिब्बे के लिए
वह मेरी आत्मा पीस कर उड़ा देते हैं
वे मेरे पोस्टर जला डालते हैं
(जिसमें जलता है भारत और उसका स्वर्ग)
मेरी आवाज़ पर लीप कर
सब कुछ कर देते हैं नया और कोरा—
मृत्यु की तरह।

आग़ा शाहिद अली की क़ब्र

दो

जब मेरा मकान मालिक नए किरायेदार लाता है,
तब जैसे उसकी याददाश्त भी अजनबी हो जाती है

वह औरत, जिसकी कोख भविष्य से भरी हुई है
अपने पति को इशारा करती है—
बीमा के काग़ज़ झपट लेने के लिए

वे नज़रअंदाज़ कर देते हैं असबाब से मेरे प्रेम-संबंध
उस कोने में रखे टेबल से
जिसने वे पंक्तियाँ भी याद रखीं
जो मैंने काट दी थीं

ओह! कितनी ख़ूबसूरत है
(पोस्टर में) उत्तेजित, उन्मत्त मडोना

मकान मालिक करने देता है उनको मेरी शव-परीक्षा
फ़िर वह कर देते हैं अनुबंध पर हस्ताक्षर

उधर कमरा दुधमुँहे बच्चों की आवाज़ से गूँज रहा है
और यहाँ मेरे हृदय ने गूँजना बंद कर दिया है

मैं अपनी क़ब्र के पत्थर हाथ में लिए
मकान छोड़ कर जा रहा हूँ।

संग्रहालय में

लेकिन ई. पू. 2500 हड़प्पा में
कांसे की ये नौकरानी किसने ढाली?
फ़र्श को घिसने से
मांस पकाते रहने से
कड़वी लौकी के लिए
हींग पीसने से
और दीवार साफ़ करने से
रूखी हो चुकी उसकी उँगलियों को
दर्द हटा कर चिकना करता
वह मूर्तिकार यह जानता था
कि सैनिकों और ग़ुलामों के ब्यौरे
कोई नहीं रखता
लेकिन मैं शुक्रगुज़ार हूँ
कि वह मूर्तिकार पर मुस्कुराई थी
जैसे कांसे की देह में
वह मुझ पर मुस्कुराती है
वह बच्ची जिसको हड़प्पा में
किसी जून की बारिश
बनना पड़ा होगा
अपने मालिक की रखैल।

***

आग़ा शाहिद अली (4 फ़रवरी 1949–8 दिसंबर 2001) भारतीय-अमेरिकी कवि हैं। अमित तिवारी हिंदी कवि-अनुवादक हैं। ‘सदानीरा’ पर इससे पूर्व भी आग़ा शाहिद अली की कुछ कविताएँ प्रकाशित हो चुकी हैं, उन्हें यहाँ पढ़े :

कश्मीर से आया ख़त 

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