नज़्में और नज़्मों से ::
सारा शगुफ़्ता
लिप्यंतरण : अर्जुमंद आरा

जेल

मैं ज़्यादा-तर नंगी रह जाती हूँ
और लोग अपनी-अपनी सज़ा को
पहुँच जाते हैं
लेकिन मैं उनको रिहा नहीं करूँगी
मैं ख़ुद बदन की जेल काट रही हूँ।

मैं किसी भी शादी से आज़ाद हूँ
कि हमेशा मेरे मर्द का साया नहीं होता।

ग़रीब की रोटी पे ज़ंग लग जाए
तो उसके कुत्ते की वफ़ादारी भी
भूखी रह जाती है।

मर्द हया पहचान ले तो वो मर्द नहीं रहता।

मैदान ख़त्म है

ज़मीन गर्द नहीं झाड़ सकती
पानियों पर ज़मीन का लाशा रखा है।

मौत मेरी गोद में एक बच्चा छोड़ गई है।

शाइरी झंकार नहीं जो ताल पर नाचती रहे।

वफ़ादारी की गलियों में कुतिया कम
और कुत्ता ज़्यादा मशहूर है।

पानियों की बदी

पानियों की कमानें
क्या समुंदर शिकार करती हैं
मैं चाँद भर रोती हूँ
और रंग-साज़ के पास सोती हूँ।

तन्हाई इतने हराम के बच्चे जनती है
कि एक-एक को ब्याहने के लिए
वक़्त को हलाक करना पड़ता है।

मुर्दे समझते हैं
औरत से अच्छी कोई क़ब्र नहीं होती।

दरवाज़े आज़ाद करते ही
मेरा घर शुरू होता है
वतन से निकलती हूँ तो
ज़मीन शुरू हो जाती है
ज़मीन से निकलती हूँ तो
वतन शुरू हो जाता है।

मुँह काला होने से बेहतर है
ज़बान सफ़ेद पड़ जाए।

इंसान वो है जो बदी को भी ईमानदारी से ख़र्च करे
हमारा आधा धड़ नेकी है और आधा बदी है।

लफ़्ज़ बड़ा आदमख़ोर होता है।

आँखें : दो जुड़वाँ बहनें

जब हमारे गुनाहों पे वक़्त उतरेगा
बंदे खरे हो जाएँगे
फिर हम तौबा के टाँकों से
ख़ुदा का लिबास सिएँगे
तुमने समुंदर रेहन रख छोड़ा
और घोंसलों से चुराया हुआ सोना
बच्चे के पहले दिन पे मल दिया गया

तुम दुख को पैवंद करना
मेरे पास उधार ज़्यादा है और दुकान कम
आँखें दो जुड़वाँ बहनें
एक मेरे घर ब्याही गई
दूसरी तेरे घर
हाथ दो सौतेले भाई
जिन्होंने आग में पड़ाव डाल रखा है।


सारा शगुफ़्ता की यहाँ प्रस्तुत कविताएँ और कविता-पंक्तियाँ राजकमल प्रकाशन से किसी परिघटना की तरह हाल ही शाया में हुए आँखें और नींद का रंग (लिप्यंतरण और संपादन : अर्जुमंद आरा) संग्रहों से चयनित हैं। अर्जुमंद आरा सुपरिचित और सम्मानित उर्दू लेखिका-अनुवादक हैं। उनके गिनाने-योग्य कामों की फ़ेहरिस्त काफ़ी लंबी है। उनसे ara.arjumand@gmail.com पर बात की जा सकती है।

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