नज़्में ::
तसनीफ़ हैदर

तसनीफ़ हैदर

मिडिल क्लास आदमी

मिडिल क्लास आदमी
समेटकर चला है अपना बोरिया
हज़ार बार का वही थका हुआ
गिरा हुआ, घुटा हुआ, रुका हुआ
न इसका कोई मसअला, न इसका कोई क़ायदा
न ये ख़सारा-ख़्वाह है न चाहता है फ़ायदा
ये आदमी खड़ा हुआ है मेट्रो की भीड़ में
फँसा हुआ है एक दायरा-मिसाल पीड़ में

मिडिल क्लास आदमी
वही ख़बर हज़ारों साल से चबाए जा रहा है
वही हुनर हज़ारों साल से दिखाए जा रहा है
वो उठ रहा है, हँस रहा है और नहाए जा रहा है
वो खा रहा है और दफ़्तरों को जाए जा रहा है
पलट के अपने घोंसले में फिर से आए जा रहा है
पसर के अपने बिस्तरों की गर्द खाए जा रहा है
यही गुनाह रोज़-रोज़ दोहराए जा रहा है

मिडिल क्लास आदमी की जेब से कफ़न जुड़ा है
ब्रेक में सियासी बहस का वबाल कट रहा है
मिडिल क्लास आदमी यहाँ-वहाँ से फट रहा है
मगर मिडिल क्लास आदमी सभी में खुल के बँट रहा है
कुछ इसका हिस्सा सूद-ख़ोर खा रहे हैं बैंकों में
कुछ इसकी नब्ज़ को डुबो रहे जंग की रुतों में
कुछ इसको जिन्सी कजरवी के भूत से डरा रहे हैं
कुछ इस पे अपने शैम्पू, क्रीम आज़मा रहे हैं
मिडिल क्लास आदमी ख़बर के हाथ बिक रहा है
ख़ुद ही के क़त्ल की ख़बर को व्हाट्सएप पे पढ़ रहा है

मिडिल क्लास आदमी के पास अपना कुछ नहीं है
न सोच की रुतों पे उसकी मोहर है, न पैरहन पर
न अपने पेट की लटकती फैलती हुई शिकन पर
न ग्लोब के बदलते रंग पर, न चाय और बन पर
न शूगरों, न टीबियों, न कैंसरों की चुभन पर
न अपने न्यूज़-एंकरों की हाँफती हुई थकन पर
न दफ़्तरों के देवताओं पर, न घर के गुलबदन पर

मिडिल क्लास आदमी के पास सिर्फ़ फ़ेसबुक है
कमेंट का दिलासा और पोस्ट की तसल्लियाँ हैं
बग़ल में उसकी दूर देश की हज़ार बल्लियाँ हैं
मुहाजिरों पे फेंकने को लाख-लाख खिल्लियाँ हैं
नज़र पे काली पट्टियाँ, लबों पे मोटी झिल्लियाँ हैं

मिडिल क्लास आदमी के पास कुछ नया नहीं है
मिडिल क्लास आदमी के पास आईना नहीं है

किताब दरमियान में

किताब दरमियान में रखी रही
वरक़-वरक़ पे तेरे होंठ का गुदाज़ लम्स था
जगह-जगह पे तेरे हाथ की लतीफ़ मुहर थी
वो शाम धुंध का लिहाफ़ ओढ़कर पड़ी रही
किताब दरमियान में रखी रही

कहीं से तू पहाड़ पर लिखी गई कहानियाँ
सुना रही थी और देवदार रक़्स कर रहे थे
हवा सुबुक-खिराम थी, नशे की एक लहर में
किसी ने जैसे वायलिन की नर्म धुन में रख लिया हो रात को
बहुत नफ़ीस, सुस्त-रौ, हसीन रात का तिलिस्म
उतर रहा हो जैसे तेरी उँगलियों के पोर में
अभी बहुत समय हो जैसे भोर में
हक़ीक़तों के ज़ोर और गाड़ियों के शोर में
किताब, रेड वाइन, नर्म शाम और ख़ामशी
किताब, सर्द हाथ, गर्म होंठ और ज़िंदगी
शफ़क़ के ख़ंजरों में सुर्ख़ रंग आबशारियाँ
बदन के बिस्तरों पे कुछ अजीब-सी बीमारियाँ
इधर से शाम की ग़ुरूब होने वाली धारियाँ
उधर से रात के तुलू’अ होने की तयारियाँ
ज़रा-सी देर शाम भी रुकी रही
ज़रा सी देर रात भी रुकी रही
किताब दरमियान में रखी रही

तेरी रगों से मेरी राह तक जो ख़्वाब आए हैं
वो अपने हाथ में लिए कोई किताब आए हैं
मेरे लबों से तेरे जिस्म तक जो ख़्वाब जाएँगे
वो अपने हाथ में लिए कोई किताब जाएँगे
हम इससे पहले मिल चुके हैं या नहीं पता नहीं
मगर हमारे दरमियान है किताब और रहेगी
मोहब्बत अपनी है इसी से कामयाब और रहेगी


तसनीफ़ हैदर उर्दू अदब के बहुत सुयोग्य, सुपरिचित और सम्मानित हस्ताक्षर हैं। उनसे और परिचय के लिए यहाँ देखें :  तसनीफ़ हैदर

1 Comment

  1. परेश नायक अक्टूबर 26, 2023 at 11:18 अपराह्न

    Awesome!

    Reply

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