मरीना त्स्वेतायेवा की कविताएँ ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद : प्रत्यूष पुष्कर

मरीना त्स्वेतायेवा │ तस्वीर सौजन्य : PIT

एक

चलो सही है : तुम लोगों ने मुझे खा लिया है
मैं—तुम्हें लिखती हूँ
वह तुम्हें डिनर की टेबल पर बिछाते हैं
मुझे इस डेस्क पर

मैं कम से ही ख़ुश रही हूँ
व्यंजन हैं जिन्हें मैंने कभी चखा नहीं है
लेकिन तुम, तुम लोग धीरे-धीरे खाते हो
और बराबर खाते हो
तुम खाते हो और खाते हो

हमारे लिए सब निर्धारित था
पीछे समुद्र में ही :
हमारे कार्य की जगहें,
हमारी कृतज्ञता की जगहें

तुम डकारों के साथ,
मैं किताबों के साथ,
तुम ट्रफ़ल्स के साथ,
मैं पेंसिल के साथ
तुम और तुम्हारे ऑलिव्स,
मैं और मेरी तुकबंदियाँ
अचार के साथ तुम, मैं, संग कविताओं के

तुम्हारे सिरहाने—अंतिम संस्कार की मोमबत्तियाँ
जैसे मोटे डंठल वाली—शतावरी
तुम्हारी सड़कें इस दुनिया से बाहर की
रेगिस्तान की मेज़ पर स्ट्राइप वाला कपड़ा

वह हवाना-सिगार फूँकेंगे
तुम्हारी बाईं तरफ़, तुम्हारी दाहिनी तरफ़
तुम्हारी देह सजाएँगे
सर्वोत्तम डच लिनेन में
और इतने महँगे कपड़े को बर्बाद न करने के लिए,
वे तुम्हें झाड़ेंगे,
खाने के टुकड़े चूरे के साथ,
कुंड में, क़ब्र में।

तुम भरवाँ मुर्ग़े, मैं कबूतर
बारूद तुम्हारी आत्मा, शवपरीक्षा में
मुझे नग्न लिटाया जाएगा
केवल दो पंख मुझे ढकने के लिए।

दो

मैं सरलता से जीती हुई ख़ुश हूँ :
एक घड़ी या एक कैलेंडर की तरह
सांसारिक पथिक, पतले,
बुद्धिमान—किसी भी जीव की तरह
यह जानती
रूह मेरी प्रेमी है
चीज़ों तक पहुँचती—तेज़
रौशनी की कोई किरण, या एक नज़र की तरह।

तीन

वैसे जीती जैसे मैं लिखती : छोड़ो—रास्ता
ईश्वर माँगता है मुझसे—और मित्र नहीं माँगते
माथे पर एक चुंबन—संताप मिटाती
मैं तुम्हारा माथा चूमती हूँ।

तुम्हारी आँखों पर एक चुंबन—अनिद्रा भगाती
मैं तुम्हारी आँखें चूमती हूँ

होंठों पर एक चुंबन—एक घूँट पानी है
मैं तुम्हारे होंठ चूमती हूँ

माथे पर एक चुंबन—स्मृति मिटाती।

काला पहाड़
पृथ्वी का प्रकाश रोकता है।
समय-समय-समय
ईश्वर को उसका टिकट वापस करने के लिए।

मैं इनकार करती हूँ—होने से
अमानवों के पागलख़ाने में
मैं इनकार करती हूँ—जीने से
तैरने से

मानुष-रीढ़ की धार पर,
मुझे कानों में छेद की ज़रूरत नहीं,
देखने वाली आँखों की नहीं

मानुष-रीढ़ की धार पर तैरने से इनकार करती हूँ
तुम्हारी पागल दुनिया से—एक उत्तर :
मैं इनकार करती हूँ।

चार

उन्होंने छीन लिया—अचानक से—और खुलेआम—
छीने पहाड़ और उनकी अंतड़ियाँ छीन लीं,
उन्होंने कोयला छीना, और स्टील ले लिया उन्होंने,
सीसा छीना और बिलौरे।

और उन्होंने चीनी छीनी, और तिपतिया छीन लिया,
उन्होंने पश्चिम छीना, और उन्होंने उत्तर छीन लिया,
मधुमक्खी के छत्ते छीने, और पुआल के ढेर छीन लिए,
उन्होंने हमसे दक्षिण छीना, और पूरब छीन लिया।

वारी उन्होंने छीना और तत्रास उन्होंने छीन लिया
हमारी उँगलियाँ छीनीं, हमारे दोस्त छीन लिए

लेकिन हम खड़े होते हैं
तब तक जब तक हमारे मुँह में थूक है!


मरीना त्स्वेतायेवा (1892–1941) सुप्रसिद्ध रूसी कवयित्री हैं। उन्होंने कविताओं के साथ-साथ काव्य-नाटक और गद्य (जिनमें उनके पत्र और डायरियाँ शामिल हैं) भी लिखा। उन्होंने 1912 में सेर्गेई एफ़्रोन से शादी की। उनकी दो बेटियाँ हुईं और फिर एक पुत्र। एफ़्रोन के वाइट आर्मी ज्वाइन करने के बाद मरीना उनसे सिविल वार के दौरान अलग हो गईं। इसके बाद उनका ओसिप मान्देल्स्ताम के साथ एक छोटा प्रेम-प्रसंग चला, और बाद में वह सोफ़िया पार्नोक के साथ एक लंबे रिश्ते में रहीं। मास्को अकाल के दौरान मरीना को अपनी बेटियों को एक अनाथालय में रखने के लिए मजबूर किया गया, जहाँ छोटी बेटी इरिना की मृत्यु 1919 में भूखमरी से हो गई। 1922 में वह अपने परिवार के साथ फिर बर्लिन चली गईं और फिर प्राग। अंतत: वह 1925 में पेरिस में आकर बस गईं। 1939 में मरीना सोवियत यूनियन वापस लौटीं। एफ़्रोन को मृत्युदंड दिया गया और उनकी बड़ी बेटी को लेबर कैंप में भेज दिया गया। जब जर्मनी ने सोवियत संघ पर हमला किया, तब मरीना को उनके बेटे के साथ येलाबुगा भेज दिया गया। 31 अगस्त 1941 को उन्होंने फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली। यह प्रस्तुति ‘सदानीरा’ के क्वियर अंक में पूर्व-प्रकाशित। प्रत्यूष पुष्कर से परिचय के लिए यहाँ देखें : वे बादल शापित हैं जो पानी से झिझकते हैं

प्रतिक्रिया दें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *