गद्य ::
देवेश पथ सारिया

जब से मैं कवि हुआ, अँग्रेज़ी से कविताओं का अनुवाद करने के बारे में मैंने कभी नहीं सोचा। वैसे भी मैं बीएससी तक हिंदी माध्यम का विद्यार्थी रहा हूँ तो अँग्रेज़ी साहित्य से मेरा पाला नहीं पड़ा। मेरा निकटतम संपर्क विश्व साहित्य से तब हुआ था, जब ग्रेजुएशन में मेरी बहन ने अँग्रेज़ी साहित्य ले लिया था और वह मुझे कभी-कभार (हिंदी में) बता देती थी कि उसकी किताबों में क्या है। मैं उस प्रभाव में अपनी आरंभिक पंक्तियाँ टूटी-फूटी अँग्रेज़ी में लिखने लगा। अब उन्हें पढ़कर शर्मिंदा होता हूँ। 2013 में मैंने तय किया कि मैं हिंदी में लिखूँगा। तब से जो भी विश्व कविताएँ मैंने पढ़ीं, वे भी मुझे तभी ढंग से तब समझ आईं, जब उनका हिंदी अनुवाद कहीं पढ़ने को मिला। फिर विश्व कविताओं का अनुवाद पढ़ते हुए मुझे एहसास हुआ कि अनुवाद के लिए साहित्य की समझ ज़रूरी है। जैसे किसी भी देश के इंसान से जुड़ने के लिए आपको मनुष्यता की आधारभूत जानकारी होनी चाहिए, वैसे ही साहित्य में भी है। अगर आप अनुवाद कर रहे हैं तो अपनी भाषा की जानकारी का प्रतिशत अधिक होना आवश्यक है। दूसरी भाषा के लिए आपको कभी-कभी शब्दकोश का आश्रय लेना होगा, और इसे स्वीकार करने में कोई शर्म नहीं होनी चाहिए।

ट्विटर से मेरा लव-हेट रिलेशनशिप रहा है। न वहाँ ढंग का साहित्य बहुत सराहा जाता है और न ही वह एक साफ़-सुथरी जगह है। यदि आप राजनीतिक रूप से सक्रिय हैं तो वह अभिव्यक्ति का एक बढ़िया मंच हो सकता है, बशर्ते आप गाली खाने के लिए तैयार हों। आपको अपनी चमड़ी मोटी रखनी होगी, क्योंकि आप किसी भी दिन अपने विरोधियों के निशाने पर आ सकते हैं। यह भी संभव है कि उन्हीं में से कोई बहरूपिया आपसे मित्रता बढ़ाकर निजी जानकारी प्राप्त कर ले और उसका स्क्रीनशॉट सार्वजनिक कर दे। असहज होते हुए भी मैं कभी-कभार ट्विटर पर जाता हूँ। मैं वहाँ प्रोफ़ाइल बनाता हूँ और कुछ समय बाद डिलीट कर देता हूँ। मैंने जनवरी 2020 में ट्विटर पर प्रोफ़ाइल बनाई थी। वहाँ किसी ने एक बुज़ुर्ग से दिख रहे कवि की कविता रीट्वीट की। मुझे लगा कि यह तो साहित्यिक कसौटी पर ऊँचे दर्ज़े की कविता है। कवि का नाम था—जॉन गुज़लोव्स्की। पोलिश-अमेरिकन कवि। मुझे महसूस हुआ कि इसे गहराई से समझने के लिए मुझे इस कविता को हिंदी में अनुवाद करके पढ़ना होगा। हिंदी माध्यम का विद्यार्थी रहने के नाते मेरा दिमाग हिंदी में प्रोग्राम्ड है। अपनी रिसर्च के बारे में भी जब कुछ बहुत फ़ंडामेंटल पढ़ने लगता हूँ तो उसे पहले हिंदी में ख़ुद को समझाता हूँ। मैंने उस कविता का हिंदी अनुवाद किया और चूँकि अनुवाद हो ही गया था, मैंने उसे अपनी फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल पर पोस्ट किया। कई वरिष्ठों ने उस अनुवाद को सराहा। मुझे लगा कि इस दिशा में और काम करना चाहिए। मैंने ट्विटर पर जॉन गुज़लोव्स्की से आग्रह किया कि वे अपनी कुछ और कविताएँ मुझे भेजें। उन्होंने अपनी कविताएँ मुझे ई-मेल कीं।

जब अनुवाद के विषय में शुरुआत करनी थी, तब मैंने विश्व कविताओं का हिंदी में प्रकाशन कर रही पत्रिका ‘सदानीरा’ के संपादक से बात की। अनुवाद की तैयारी और प्रस्तुति के संबंध में ज़रूरी मार्गदर्शन उनसे प्राप्त हुआ। अपने किए अनुवादों में कवि के चयन को लेकर मैं प्रयोग कर रहा हूँ, जिसे वे समर्थन और प्रोत्साहन देते हैं। पिछले दिनों ताइवान की एक बीस साल की अंडरग्रेजुएट स्टूडेंट यंग शन शुन की कविताओं का मेरे द्वारा किया अनुवाद उन्होंने प्रकाशित किया। अपनी मातृभाषा से भी पहले यंग शन शुन हिंदी में प्रकाशित हुईं। यंग शन शुन की कविताओं की परिपक्वता से कवयित्री की कम उम्र का हल्का-सा भी आभास नहीं होता।

कविता से संबंधित कोई भी काम मैं दबाव में नहीं करता। एक साल से जो मैं गद्य लिखने लगा हूँ, उसके लिए ज़रूर मुझे ख़ुद को धक्का लगाना पड़ता है। मुझे लगता है कि रचनाकार किसी भी विधा में लिखता रहे, पर उसकी आत्मा वस्तुतः किसी एक विधा के रंग में रँगी होती है। मेरी आत्मा एक कवि की आत्मा है। जो नैसर्गिक रूप से गद्यकार होते होंगे, उन्हें वही सुख गद्य में मिलता होगा। अनुवाद भी मैं सिर्फ़ कविताओं का ही करना पसंद करता हूँ और बहुत अधिक नहीं। जैसा मैंने बताया, कविता मुझ पर कभी बोझ नहीं होती। मैं तभी अनुवाद करता हूँ, जब मेरा मन हो। चूँकि मैं एक दूसरे देश में हूँ, मेरे पास यह अवसर है कि मैं नितांत नए कवियों को हिंदी के समाज के सामने ला सकूँ। मैं प्रयास कर रहा हूँ कि न केवल ताइवानी बल्कि यहाँ रह रहे बाक़ी देशों के कवियों से भी संपर्क कर सकूँ। अभी राजधानी ताइपेई में एक आयोजन के दौरान कुछ अमेरिकी कवियों से बात की है।

मेरे लिए किसी कवि की कविताओं का चयन करने की सबसे ज़रूरी शर्त है कि वे कविताएँ मुझे बतौर पाठक पसंद आई हों। मैं कविता शैली को लेकर जिद्दी नहीं हूँ। अपनी निजी कविता शैली से बिल्कुल भिन्न ढंग से लिखने वाले कवियों का अनुवाद करना मैं पसंद करता हूँ। यह एक चुनौतीपूर्ण काम है। जैसे अमेरिकन कवयित्री क्लेयर कॉनरॉय की शैली मुझसे बिल्कुल विपरीत है, लेकिन जब उनका अनुवाद ‘सदानीरा’ पर प्रकाशित हुआ तो मेरे द्वारा किए अनुवादों में से सबसे ज़्यादा संभवतः वही पढ़ा गया।

अनुवादक के सामने सबसे बड़ी मुश्किल तो यही है कि जितना हो सके, ‘लॉस्ट इन ट्रांसलेशन’ होने से रोकना। एक और बात जो कभी-कभी किसी अनुवाद को पढ़ते समय मुझे अखरती है, वह है—कृत्रिमता। कोई बनावटीपन या नक़ली शास्त्रीयता अनुवाद में न ठूँस दी गई हो। मैं इससे बचने का प्रयास करता हूँ। अनुवादक की मुश्किलों पर ताइवानी कवि चेन ली कि एक कविता का अनुवाद मैंने किया था—‘अनुवाद की एक सीख’। इस कविता में लिखी बातों से मुझ सहित सभी अनुवादक दो-चार होते ही हैं।

जब कोई कवि अपनी स्थानीय संस्कृति से गहरे जुड़ा हुआ है तो उसका अनुवाद करना कठिन होता है। ताइवानी कवि ली मिन-युंग की कविताओं का अनुवाद करते हुए मुझे इस चुनौती से जूझना पड़ा। अमेरिकन कवयित्री क्लेयर कॉनरोय की कविताएँ अमेरिकन संस्कृति से जुड़ी हैं। उनमें ड्रग्स, प्यार, शराब, ब्रेकअप और दर्शन सब एक साथ बहुत जटिलता से गुँथा हुआ है। ऐसी कविताओं का संदर्भ समझने में मेहनत करनी पड़ती है। मान लीजिए कवि ने अपने लोक की किसी कहावत का प्रयोग किया और आपको उसका मतलब ढूँढ़ने पर भी नहीं मिल रहा। ऐसे में यदि कवि जीवित है, आपके संपर्क में है तो बिना शर्म किए उससे पूछ लेने में कोई हर्ज़ नहीं है। यदि कवि जीवित नहीं है, तो आपको अन्य जानकारों से मदद माँगनी होगी।

जिन अनुवादकों द्वारा किया अनुवाद मुझे पढ़ना पसंद है, उनमें सबसे ऊपर नाम मनोज पटेल का है। मंगलेश डबराल के किए अनुवाद-कार्य की काफ़ी तारीफ़ सुनी है। उन्हें कुछ पढ़ा है, और पढ़कर उनसे सीखना चाहता हूँ। विदेश में होने की वजह से मैं बहुत सारी हिंदी किताबें नहीं पढ़ पा रहा हूँ जो सिर्फ़ हार्ड कॉपी में उपलब्ध हैं। गीत चतुर्वेदी ने ईरान के मज़दूर कवि सबीर हका की कविताओं का जो अनुवाद किया है, वह मुझे बहुत प्रिय है। शायक आलोक ने चार्ल्स बुकोवस्की की कविताओं के अच्छे अनुवाद प्रस्तुत किए हैं। विपिन चौधरी और मणि मोहन मेहता मेरे मित्र हैं, जिनसे अनुवाद पर चर्चा होती है। अनुवाद करने से आपकी अपनी कविता का फ़लक विस्तृत, अनोखा और सुंदर हो जाता है।

देवेश पथ सारिया हिंदी कवि-लेखक और अनुवादक हैं। उनसे deveshpath@gmail.com पर बात की जा सकती है। इस प्रस्तुति की फ़ीचर्ड इमेज़ : LITERARY HUB

4 Comments

  1. योगेश ध्यानी फ़रवरी 18, 2021 at 8:32 पूर्वाह्न

    अनुवाद की छान बीन करता बहुत अच्छा लेख देवेश जी।आपके अनुवादों को पढ़कर कुछ अनुवाद करने का मन पिछले कुछ रोज़ से मेरा भी कर रहा है, हालांकि कामयाबी अभी तक नहीं मिली है। उम्मीद है ये लेख अब काम आयेगा। धन्यवाद देवेश जी ।

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    1. देवेश पथ सारिया फ़रवरी 18, 2021 at 10:18 पूर्वाह्न

      आपका स्वागत है योगेश जी। ज़रूर। बेहतर अनुवाद पढ़ना हमेशा सुखद होता है।

      इस गद्य को प्रकाशित करने हेतु सदानीरा का विशेष आभार।

      देवेश

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    2. सोनू यशराज फ़रवरी 18, 2021 at 5:40 अपराह्न

      देवेश आपने बहुत सुंदर लिखा।
      आपके किये अनुवाद सजग हैं और एक नई उम्मीद जगाते हैं ।आपको अशेष शुभकामनाएं !

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  2. ज्योति रीता फ़रवरी 20, 2021 at 10:28 पूर्वाह्न

    अनुवाद से कोई नाता नहीं रहा है । फिर भी लेख पढ़कर बहुत सी चीजों की जानकारी प्राप्त हुई । गहरी जांच-पड़ताल और कई ऐसी बिंदुओं का जिक्र है जो अनुवादकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।

    शुभकामनाएं।

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