रणजीत दाश की कविताएँ ::
बांग्ला से अनुवाद : बेबी शॉ

ईश्वर की आँखें
हमारे शरीर के हर छिद्र में
जागी हुई हैं ईश्वर की आँखें
अंतर में षड्यंत्र, चंद्रमा, मृत मित्र का रक्त,
कृमि, कीट, नग्न राक्षस…
अंदर में मुखौटे, जुआ, नृत्य, शराब, वेश्याओं की हँसी
वे देखती हैं,
ठीक वैसे ही
जैसे एक बालक
अपने पिता के हत्यारे के साथ
अपनी माँ के
अवैध संबंधों का दृश्य देखता है।
क्षत
महान् कलाकारों की जीवनी में अक्सर हम उनकी कल्पनातीत क्रूरता की कहानियाँ पढ़ते हैं। पढ़ते हैं और गंभीर रूप से भ्रमित महसूस करते हैं। हम सोचते हैं कि जो व्यक्ति व्यक्तिगत जीवन में इतना हृदयहीन और निर्मम है, उसकी कला का क्या मूल्य है! कितनी भी महान् कला क्यों न हो, क्या हम उसकी क़द्र करेंगे?
विद्वान कहते हैं, ग़लत, यह निर्णय ग़लत है। कलाकार भी एक इंसान है, और हर इंसान की तरह, उसके भीतर भी साधु और शैतान दोनों होते हैं… और कला का सृजन इन दोनों के द्वंद्व से ही होता है। इसलिए, कलाकार के व्यक्तिगत जीवन से उसकी कला का मूल्यांकन करना एक गंभीर भूल है।
विद्वान हमेशा इतनी सटीक बातें कहते हैं! इतनी सच्ची बातें! और सभी सत्य अद्भुत रूप से निर्मम होते हैं! क्या कोमलता के पक्ष में कोई सत्य नहीं है? नहीं, कोमलता के पक्ष में कोई सत्य नहीं है, बस दर्द है। उस दर्द के सामने मैं आजीवन गुम रहता हूँ।
मैंने देखा है—मैंने मन में एक कठोर बात की गाँठ बाँध रखी है। वह बात यह है कि कलाकार बनने की चाह में अपना घर तोड़ने वाले महत्त्वाकांक्षी पति-पत्नी… अपनी नवजात बेटी को उसके गाँव के मामा के घर छोड़कर, पेरिस आकर रॉदिन का शिष्य बनने वाले रिल्के की सारी कविताएँ मुझे स्पर्श करने योग्य नहीं लगती हैं। पिकासो द्वारा अपनी बीमार साथी फ़्रांस्वा गिलो के गाल पर जलती सिगरेट का निशान लगाने के कारण, मैं पिकासो की सभी तस्वीरों को पेट्रोल डालकर जला सकता हूँ। जीवन के अपराध को ढकने के लिए कला की सफ़ाई नहीं चाहिए। वह अपराध एक मूक प्राण में जो घाव पैदा करता है, कलाकार की सारी कला-कृतियों से भी—उस घाव की माफ़ी नहीं होती, सेवा नहीं होती। सारी की सारी कला से वह क्षत बड़ा है।
सारी कला के ख़िलाफ़—वह क्षत ही ईश्वर की उदास कविता है।
शराब
स्त्री के अंदर डूबकर पुरुष की मृत्यु हो गई है। रेत पर बिखरे हैं—उसके चश्मे के टुकड़े, किताबें और ब्रीफ़केस। वह नहीं है, लेकिन एक पड़ी हुई ख़ाली काँच की बोतल में उसका धुंधला प्रतिबिंब फँसा हुआ है। वह प्रतिबिंब अभी भी हँस रहा है, हाथ हिला रहा है, बात कर रहा है और बीच-बीच में रूमाल से पोंछ रहा है—चुंबनसिक्त भीगे होंठ।
कई ग़ोताख़ोर उस बोतल के अंदर घुसकर तलाश कर रहे हैं—उसके शव की…
ट्रैफ़िक पुलिस
जब शहर में कोई पागल हो जाता है, तो वह ट्रैफ़िक पुलिस बन जाता है। वह अपने तरीक़े से ट्रैफ़िक को नियंत्रित करने लगता है—घंटों तक, दिनों तक। उसके हाथ के इशारे एकदम सटीक होते हैं, उसकी गंभीरता अटूट होती है। बस, उसके नियंत्रित वाहन और घोड़े पूरी तरह से अदृश्य होते हैं।
वे वाहन और घोड़े जो किसी को नहीं कुचलते, किसी प्रियजन को बस स्टॉप पर नहीं उतार देते…
हम निखुंत1पूर्ण, निर्दोष, Perfect नहीं हैं
हम पूर्ण नहीं हैं। एक टिड्डा पूर्ण है। एक शाम का तारा पूर्ण है। एक बारिश की बूंद पूर्ण है। एक वसंत की रात पूर्ण है। लेकिन हम जन्म से ही अपंग, बेडौल, मूर्ख और बेसहारा हैं। हम धूर्त, जालसाज़, भंगुर और भिखारी हैं। हम जन्म लेते हैं—केवल ग़लत सपनों में, ग़लत कामों में, ग़लत शहर में चलकर अपने आपको नष्ट करने के लिए, ग़लत लोगों से प्यार करने और चोट खाकर, दिल टूटकर मर जाने के लिए। बस, अंत में पता चलता है कि हमारी सारी ग़लतियाँ मारात्मक रूप से कितनी पूर्ण हैं!
ट्रक की कविता
मेरी कविता अगर ट्रक के पीछे लिखी होती तो—
ख़लासी का हाथ तुम्हारी उद्दंड आँखों में
तो क्या अनर्थ की छाया डाल जाती?
ट्रक के पीछे कविता लिखना आसान नहीं है
क्रोध है, अमंगल है,
वर्तनी की गंभीर ग़लतियाँ हैं,
शुभकामनाएँ और गुम-ख़ून हैं
अभ्यास के लिए, मान लें, अंधकारमय राष्ट्रीय राजमार्ग पर
तीव्र गति मारुति का रास्ता रोककर
दौड़ते ट्रक की नैश्य सतर्कता—
‘पायलट चुंबनरत, हॉर्न बजाने पर चाँद डूब जाएगा।’
या पहाड़ के पास, अचानक मोड़ के सामने
‘रास्ता नहीं, फिर भी तुम अकेले यात्री हो।’
—मैं ख़ुद लिख देता, जापानी कलाकार की तरह,
धार्मिक अक्षरों में,
गहरे नीले रंग से, दोनों तरफ़ मरे हुए की खोपड़ी बनाकर
अंतिम रात में वह लेख पढ़कर
अगर ख़ुश हो जाता ढाबे का मालिक—
रोटी और तड़के की गंध में
यह यात्रा स्मरणीय हो जाती।
पिता को
चावल और कपड़ों की दुश्चिंता में ही
सारी ज़िंदगी बीत गई आपकी।
कोई शिल्प, कोई संभोग, कोई उदासीन वैभव
आपको स्पर्श नहीं कर पाया।
आपके बारे में लिखना मेरे लिए असंभव है।
आप मेरे लेखन की दुनिया से थोड़े दूर हैं,
जैसे शहर से थोड़ा दूर रहता है—पावर स्टेशन।
गान
हर इंसान अपने निजी गीत में जीता है
सिर हिलाते हुए पागल की तरह।
वह गीत सुनना चाहते हो?
बस, उसके सीने पर कान लगाओ।
रजनीगंधा
मौत के बाद एक अजीब बदलाव होता है। शरीर सड़ने लगता है, बदबू आने लगती है। धीरे-धीरे वह बदबू विकट और भयानक हो जाती है और अंधे क्रोध में हमला करती है—आस-पास की हर चीज़ पर। सत्तर साल तक जो शरीर हल्की ख़ुशबू से भरा था, चालीस साल तक जिस शरीर की ख़ुशबू में अपना चेहरा छुपाकर सोई थी उसकी प्रिय स्त्री, वह स्त्री भी नाक पर रूमाल रखे बिना उस शरीर के पास नहीं जा सकती। इसलिए शव को जल्द से जल्द आग में जला देना पड़ता है या क़ब्र खोदकर मिट्टी में दबा देना पड़ता है।
तो क्या प्राण वास्तव में एक गुप्त ख़ुशबू है जो जीवन भर शरीर के अंदर रहती है और मौत के पल में शरीर को छोड़कर चली जाती है?
चिकित्सा
फ़्रायड ने अपने चिकित्साधीन पागलों के बारे में एक मार्मिक टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि कुछ पागलों को इलाज करके ठीक करने की उनकी इच्छा नहीं होती थी, क्योंकि वह स्पष्ट रूप से समझते थे कि इन पागलों ने स्वस्थ अवस्था में इतना भयानक मानसिक दर्द सहा है कि पागल हो जाना ही उनकी वास्तविक मुक्ति और उपशमन था। स्वस्थ होने पर वे फिर से उस दर्द का शिकार हो सकते हैं।
फ़्रायड की इस भयानक टिप्पणी को पढ़ने के बाद से ही मैं समझने लगा हूँ कि सभी पागल बीमार नहीं होते। कुछ पागल मर्मांतक रूप से स्वस्थ हैं। इस जीवन में, कभी-कभी, स्वस्थता ही रोग होती है और पागलपन ही उसकी चिकित्सा।
रणजीत दाश [जन्म : 1949] सुपरिचित बांग्ला कवि-गद्यकार हैं। उनका जन्म असम के सिलचर में हुआ। बाद में वह कोलकाता चले आए, जहाँ उन्होंने पश्चिमबंग सिविल सेवा में काम किया और वर्ष 2006 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली। रणजीत दाश को शंख घोष के बाद सत्तर के दशक में उभरे बंगाल के कुछ श्रेष्ठ आधुनिक कवियों में से एक माना जाता है। समकालीन बांग्ला कविता की धारा में उन्होंने शहरी जीवन की विशिष्टता और एक नई काव्यात्मक शैली जोड़ी है। वर्ष 2013 में पश्चिम बंगाल सरकार ने उन्हें रवींद्र पुरस्कार प्रदान किया। अब तक उनकी बारह काव्य-पुस्तकें, दो निबंध-संग्रह और एक उपन्यास प्रकाशित है। उनकी कविताओं के अँग्रेज़ी अनुवाद की एक पुस्तक एलियंस इन द मेट्रो शीर्षक से वर्ष 2024 में आ चुकी है। उन्होंने 2012 में क्रोएशिया की साहित्यिक यात्रा भी की।
रणजीत दास की कविता-सृष्टि गहरी मानवीय सहानुभूति से प्रेरित अपनी असाधारण बौद्धिकता और कल्पनाशीलता के लिए उल्लेखनीय है। यह कविता-सृष्टि एक अज्ञात सौंदर्य की खोज में एक कवि की आंतरिक खोज को दर्शाती है। रणजीत दास की कविताएँ सदा ही अस्तित्ववादी मुद्दों से जुड़ी होती हैं, लेकिन वे जीवन के मूल गीत और नृत्य से कभी अलग नहीं होतीं। उनकी कविता की सशक्त जीवंतता—आधुनिकतावादी अवधारणाओं जैसे : अलगाव, ऊब या शहरी चिंता की परवाह नहीं करती। उनकी कविता को अलग करने वाली एक अन्य बात है—तीव्र कामुकता की उपस्थिति, जो जीवन-शक्ति और रूपक दोनों के रूप में मौजूद है। रणजीत दाश असफलता पर केंद्रित अपने एक वक्तव्य-आलेख में कहते हैं :
किसी कवि की लंबे समय तक गुमनामी धीरे-धीरे अपने आप में एक तरह की प्रसिद्धि बन जाती है—एक बहुत ही जिद्दी, पंथवादी, भूमिगत प्रसिद्धि; जिससे सेलिब्रिटी कवि हमेशा डरते हैं! क्योंकि इस तरह की गुप्त प्रसिद्धि के बारे में अफ़वाह है कि इसका कला की दुनिया में अमरता से सीधा संबंध है। [यह एक भयावह और भयावह अफ़वाह है, जो मृत कवियों को जीवित और जीवित कवियों को मृत बना देती है!]
बेबी शॉ नई पीढ़ी की सुपरिचित-सम्मानित कवि-कथाकार-अनुवादक हैं। उनसे और परिचय तथा ‘सदानीरा’ पर इस प्रस्तुति से पूर्व-प्रकाशित उनकी कविताओं एवं अनुवाद-कार्य के लिए यहाँ देखिए : क्या अब भी पाठ-योग्य नहीं हुआ समय! | तुम्हें दुखी करना मेरे जीवन का तरीक़ा नहीं है | अंतिम पृष्ठ पर कविता की तरह | मैं लिखूँगा | द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद | केवल देवी बनकर जीवित रहना संभव नहीं इस संसार में | हमारा मर्म हमारे जीवन का शिल्प है | देश ने हमें कोई मातृभाषा नहीं दी अभी तक