ओउज़ अताय के कुछ उद्धरण ::
तुर्की से अनुवाद और प्रस्तुति : निशांत कौशिक

ओउज़ अताय

ओउज़ अताय : इस्तांबुल की गलियों में भटकता काफ़्का

किसी आधुनिक उपन्यास को पढ़ते हुए, उसकी विषयवस्तु में जीवन के बेतुकेपन और व्यवस्था की ऊलजलूलियत को देखते ही उसे काफ़्काई कहना एक अधीरता भी हो सकती है और अन्याय भी। काफ़्का के वारिसों की सूची लंबी है। कोई उसके उपन्यास के नायकों से संवादित होता है तो कोई उसके शिल्प से।

ओउज़ अताय (1934-1977) उन चंद लेखकों में से थे जिन्हें तुर्की के आधुनिकीकरण से बहुत अपेक्षाआएँ थीं, लेकिन कालांतर में वह इस बदलाव के स्वरूप से खिन्न होते चले गए। तुर्की के एक और लेखक अहमद हामदी तानपीनार के लेखन में भी यही खिन्नता मौजूद है, लेकिन उसका स्वर उतना उदासीपूर्ण नहीं है।

ओउज़ अताय के लेखन को The great untranslated में शुमार किया जाता रहा है, मसलन अपने एक उपन्यास Tutunamayanlar (अनुवाद : अस्थिर, उखड़े हुए या पकड़ से परे) में वह नायक तुर्गुत की चेतना को व्यक्त करने के लिए विभिन्न प्रकार की साहित्यिक तकनीकों का उपयोग करते हैं जिनमें स्ट्रीम ऑफ़ कॉन्शियसनेस, आधिभौतिक तत्त्व और विभिन्न कथात्मक आवाज़ों के कोलाज़ जैसे संयोजन शामिल हैं। तुर्गुत अपने मित्र की आत्महत्या के कारणों की तलाश कर रहा है। इस दौरान मृत दोस्त के छोड़े हुए सबूतों और वस्तुओं की तलाश करते हुए ख़ुद को ही परवर्तित होता हुआ पाता है। यह उपन्यास केवल एक व्यक्ति की अस्तित्व संबंधी यात्रा के बारे में नहीं है, बल्कि इसमें मानवीय स्थिति और एक खंडित दुनिया में पहचान और अपनेपन की खोज पर गहन चिंतन भी है।

इसी तरह उनके एक कहानी-संग्रह Korkuyu Beklerken (डर का इंतिज़ार करते हुए) में शामिल एक कहानी के नायक के हाथ एक चिट्ठी लगती है जिसकी भाषा अब चलन में नहीं है, अर्थात् वह एक मृत भाषा में लिखित है। अंततः जब चिट्ठी का अर्थ खुलता है तो उसमें नायक को घर न छोड़ने की हिदायत होती है। नायक पहले इसका मज़ाक़ उड़ाता है, पर बाद में एक अज्ञात भय उसे जकड़ता है और वह अपने आपको एक कमरे में बंद कर लेता है। यह कहानी काफ़्का के ‘मेटामॉरफोसिस’ की याद दिलाती है जिसमें नायक हर पल बदल रहा है और अकेला छूट रहा है।

ओउज़ अताय के यहाँ प्रस्तुत उद्धरण तुर्की से हिंदी में अनुवाद करने के लिए उनकी Korkuyu Beklerken, Tehlikeli Oyunlar, Tutunamayanlar, Bir Bilim Adamının Romanı शीर्षक पुस्तकों से चुने गए हैं। ये सभी पुस्तकें İletişim Yayınları, İstanbul से प्रकाशित हैं।

— निशांत कौशिक

ओउज़ अताय

काश मैंने दस हज़ार किताबें पढ़ी होतीं तो मैं आपसे एक ख़ूबसूरत और मुनासिब बात कह पाता। फिर भी, जब तक मैं एक अधूरा वाक्य नहीं कहूँगा; मुझे सहज महसूस नहीं होगा, मैं आपसे अपने तरीक़े से मिलकर ही बहुत ख़ुश हूँ।

जिस भी चीज़ का पीछा करें, अंत में हम ख़ुद को पाते हैं।

शहर मुझसे होकर गुज़रते हैं।

मेरे जीवन की शुरुआत और अंत तो स्पष्ट थे, मुझे बस बीच के हिस्से पर क़ाबू पाना था।

मेरे जीवन में मेरी रबड़ हमेशा मेरी पेंसिल से पहले ख़त्म हो जाती है, क्योंकि मैंने अपनी सच्चाइयाँ लिखने के बजाय उन्हें रख लिया और दूसरों की गलतियाँ मिटा दीं।

मुझे किसी की ज़िंदगी रास न आई और कोई ऐसी ज़िंदगी भी नहीं मिली जो मेरे लायक़ होती।

हमारा सारा सौंदर्य जिए हुए और सोचे हुए के बीच के दुखद अंतर्विरोध की छवि है।

यदि तुम मुझे एक दिन भूल जाओगे, यदि तुम मुझे एक दिन छोड़ ही दोगे तो मुझे यूँ थकाओ मत।

मुझे मेरे कोने से बेवजह बाहर मत निकालो।

जो मुझे समझेगा वो मुझे वहीं ढूँढ़ लेगा जहाँ मैं बैठा हूँ।

तुम्हें मुझे समझना होगा, क्योंकि मैं कोई किताब नहीं हूँ। इसलिए मेरे मरने के बाद मुझे कोई नहीं पढ़ सकता, मुझे जीते जी ही समझना होगा।

जीवन का कोई पूर्वाभ्यास नहीं है जो अनुभव किया है उसे न तो दुबारा जीना संभव है और न ही उसे मिटाना संभव है। सबसे ज़रूरी बात यह है कि प्यार पहली बार नहीं, बल्कि आख़िरी बार करना चाहिए।

पहली शर्म कितनी प्यारी होती है, हालाँकि लोग इसे अक्षमता मान जल्द से जल्द दूर करने की कोशिश करते हैं।

वह इस जादू की बर्फ़ को तोड़ने के लिए अपनी पूरी ताक़त से कोशिश करते हैं।

लोग सिक्के की तरह हैं। उनके दो पहलू होते हैं—चित्त या पट्ट। एक पहलू वह दिखाते हैं और दूसरा हमें समय दिखाएगा।

किसी वजह से हम फ़ोटो लेते समय भी मुस्कुराने के लिए बाध्य महसूस करते हैं। हम वहाँ भी ख़ुशी का खेल खेल रहे होते हैं।

मैं जो उसे लिखता हूँ, उसे उसके अलावा हर कोई पढ़ता है।

मैं किताब न पढ़ पाने के ख़याल से डरता हूँ।

हर कोई आसानी से अपनी याददाश्त या ख़राब याददाश्त के बारे में शिकायत करता है, लेकिन वे कभी भी अपनी बुद्धिमत्ता के बारे में शिकायत नहीं करते हैं। वह नहीं जानते कि स्मृति भी बुद्धि का ही एक हिस्सा है।

मानव-विकास नाम की कोई चीज़ नहीं है। उसे बस अपनी ख़ामियों की आदत हो जाती है, बस इतना ही है।

…प्यार करना, अधूरी रह गई किताब को जारी रखने जैसा आसान काम नहीं था।


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