निकोस कज़ानज़ाकिस के उद्धरण ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद : आसित आदित्य
कैसे मैं, जो जीवन को इतनी तीव्रता से चाहता है, स्वयं को लंबे समय तक किताबों की निरर्थक बातों और स्याही से काले पड़े पन्नों में उलझा हुआ छोड़ सकता था!
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वे जो वाक़ई जीवन के रहस्यों को जीते हैं, उनके पास उन्हें लिखने का समय नहीं होता और वे जिनके पास समय होता है; वे उन्हें नहीं जीते।
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प्रत्येक व्यक्ति की अपनी मूर्खता है, लेकिन सबसे बड़ी मूर्खता है—मूर्खता का न होना।
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अगर एक स्त्री अकेली सोती है तो यह सभी पुरुषों के लिए शर्मनाक है। ईश्वर के पास बड़ा दिल है, लेकिन एक ऐसा भी पाप है जिसे वह माफ़ नहीं करता : अगर एक स्त्री किसी पुरुष को बिस्तर पर बुलाती है और वह नहीं जाता।
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ख़ुशी का अनुभव करते हुए हमें उसके प्रति चेतन होने में कठिनाई होती है। जब ख़ुशी गुज़र जाती है और हम पीछे मुड़कर उसे देखते और अचानक से महसूस करते हैं—कभी-कभार आश्चर्य के साथ—कितने ख़ुश थे हम।
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तुम एक बहरे व्यक्ति का दरवाज़ा ताउम्र खटखटाते रह सकते हो।
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ईश्वर अपना रूप पल-पल बदलता रहता है। ख़ुशक़िस्मत हैं वे जो उसे उसके तमाम रूपों में भी चीन्ह सकते हैं।
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जीवन आफ़त है। केवल मृत्यु नहीं है। जीना अपनी कमर की पेटी खोलना और आफ़त की तलाश करना है।
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एक दिन मैं एक छोटे-से गाँव में गया। एक नब्बे वर्षीय दादा बादाम का पेड़ लगाने में व्यस्त थे। “ये क्या दादा!”—मैंने कहा, “बादाम का पेड़ लगा रहे हो?” और वह वैसे ही झुके हुए मेरी तरफ़ मुड़े और कहा, “मेरे बच्चे, मैं ऐसे जीता हूँ : जैसे मैं कभी नहीं मरूँगा।” मैंने जवाब दिया, “और मैं ऐसे जीता हूँ : जैसे मैं किसी भी पल मर जाऊँगा।”
हम में से कौन सही था, मालिक?
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जब सब कुछ बुरा हो रहा हो, कितना मज़ेदार है—अपनी आत्मा की जाँच करना और यह परखना कि इसके पास कितनी सहनशीलता और हिम्मत है! एक अदृश्य और सर्व-शक्तिशाली शत्रु—कुछ जिसे ईश्वर कहते हैं, कुछ शैतान, हमें बर्बाद करने के लिए हमारी तरफ़ तेज़ी से बढ़ता है; पर हम बर्बाद नहीं हुए हैं।
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लोगों को उनके हाल पर छोड़ दो, मालिक, उनकी आँखें मत खोलो। और मान लो यदि तुमने ऐसा कर भी दिया तो वे क्या देखेंगे? अपनी दुर्गति! उनकी आँखों को बंद रहने दो, मालिक, और उन्हें स्वप्न देखते रहने दो।
ओह हाँ! पत्नी। बच्चे। घर। सब कुछ। संपूर्ण तबाही।
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तुम्हारे अंदर भी एक शैतान है, पर तुम उसका नाम अभी नहीं जानते; और चूँकि तुम यह नहीं जानते, तुम साँस नहीं ले सकते। उसका बपतिस्मा कर दो, मालिक, और तुम बेहतर महसूस करोगे।
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‘मनुष्य निर्दयी है…’ उसने कहा : कंकड़ों को अपनी छड़ी से ठोकते हुए, ‘बेहद निर्दयी। तुम्हारी नवाबी को इसका एहसास नहीं है। लगता है कि तुम्हारे लिए सब कुछ आसान रहा है, लेकिन मुझसे पूछो। दानव, मैं कहता हूँ! यदि तुम उसके प्रति क्रूर रहोगे, वह तुम्हारी इज़्ज़त करेगा, तुमसे भय खाएगा। यदि तुम उसके प्रति दयालु होगे, वह तुम्हारी आँखें निकाल लेगा।’
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…मुझे एहसास हुआ है कि प्रकृति के महान नियमों का उल्लंघन प्राणनाशक पाप है। हमें ज़ल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए, हमें अधीर नहीं होना चाहिए, बल्कि हमें आत्मविश्वास के साथ शाश्वत लय की आज्ञा का पालन करना चाहिए।
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तुम्हारे पास सब कुछ है, परंतु एक चीज़ है : पागलपन। एक इंसान को थोड़े पागलपन की आवश्यकता होती है, अन्यथा—वह कभी हिम्मत नहीं कर पाएगा—रस्सी काटने और स्वतंत्र हो जाने की।
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मैं उसके साथ छह महीने रहा। उस दिन से—ईश्वर मेरा साक्षी है!—मुझे किसी चीज़ से डरने की ज़रूरत नहीं पड़ी। सिवाय एक चीज़ के कि शैतान या भगवान, उन छह महीनों की स्मृति मेरे मन से मिटा देगा।
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निकोस कज़ानज़ाकिस (1883-1957) संसारप्रसिद्ध ग्रीक लेखक-दार्शनिक हैं। उनके यहाँ प्रस्तुत उद्धरण अँग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद करने के लिए उनकी अत्यंत लोकप्रिय पुस्तक ‘ज़ोरबा द ग्रीक’ से चुने गए हैं। आसित आदित्य नई पीढ़ी के कवि-लेखक-अनुवादक हैं। उनसे और परिचय के लिए यहाँ देखिए : मैं स्वयं से पूछा करता था—मैं इतना मूर्ख क्यों हूँ
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